सोमवार, 30 नवंबर 2009

gitakiboli आइये ऋषि से जानें कुछ प्रश्नों के उत्तर - वेदोत्पत्तिविषयः (3)


Submitted by AnandBakshi on Wed, 2009-06-03 12:38. Vedic Philosophy

प्रश्न - ‍ईश्वर ने मनुष्यों को स्वाभाविक ज्ञान दिया है सो सब ग्रन्थों से उत्तम है, क्यो‍कि उसके बिना वेदों के शब्द, अर्थ और सम्बन्ध‌ का ज्ञान कभी नहीं हो सकता
और जब उस ज्ञान की क्रम से वृद्धि होगी, तब मनुष्य लोग विद्यापुस्तकों को भी रच लेंगे, पुनः वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से क्यों माननी ?



उत्तर - जो प्रथम दृष्टान्त बालक का एकान्त में रहने का और दूसरा वनवासियों का भी कहा था, क्या उनको स्वाभाविक ज्ञान ईश्वर ने नहीं दिया है ? वे स्वाभाविक ज्ञान से विद्वान क्यों नहीं होते ? इससे यह बात निश्चित है कि ईश्वर का किया उपदेश जो वेद है, उसके बिना किसी मनुष्य को यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता
जैसे हम लोग वेदों को पढ़े, विद्वानो की शिक्षा और उनके किये ग्रन्थों को पढ़े बिना पण्डित नहीं होते, वैसे ही सृष्टि के आदि में भी परमात्मा जो वेदों का उपदेश न करता तो आज पर्यन्त किसी मनुष्य को धर्मादि पदार्थों की यथार्थ विद्या नहीं होती
इससे क्या जाना जाता है कि विद्वानों की शिक्षा और वेद पढ़े बिना केवल स्वाभाविक ज्ञान से किसी मनुष्य का निर्वाह नहीं हो सकता
जैसे हम लोग अन्य विद्वानों से वेदादि शास्त्रों के अनेक प्रकार के विज्ञान को ग्रहण करके ही पीछे ग्रन्थों को भी रच सकते हैं, वैसे ही ईश्वर के ज्ञान की भी अपेक्षा सब मनुष्यों को अवष्य है
क्योंकि सृष्टि के आरम्भ में पढ़ने और् पढ़ाने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी, तथा विद्या का कोई ग्रन्थ भी नहीं था
उस समय ईश्वर के किये वेदोपदेश के बिना विद्या के नहीं होने से कोई मनुष्य ग्रन्थ की रचना कैसे कर सकता ? क्योंकि सब मनुष्यों को सहायकारी ज्ञान में स्वतन्त्रता नहीं है
और स्वाभाविक ज्ञानमात्र से विद्या की प्राप्ति किसी को नहीं हो सकती
इसीलिए ईश्वर ने सब मनुष्यों के हित के लिये वेदों की उत्पत्ति की है




और जो यह कहा था कि अपना ज्ञान सब वेदादि ग्रन्थों से श्रेष्ठ है सो भी अन्यथा है, क्योंकि वह स्वाभाविक जो ज्ञान है सो साधनकोटि में है
जैसे मन के संयोग के बिना आंख से कुछ भी नहीं देख पड़ता तथा आत्मा के संयोग बिना मन से भी कुछ नहीं होता, वैसे ही जो स्वाभाविक ज्ञान है सो वेद और विद्वानों की शिक्षा के ग्रहण करने में साधन मात्र ही है, तथा पशुओं के समान व्यवहार का भी साधन है, परन्तु वह स्वाभाविक ज्ञान धर्म, अर्थ, काम और मोक्षविद्या का साधन स्वतन्त्रता से कभी नहीं हो सकता




महर्षि दयानन्द सरस्वती

(ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका)

Q/A on CREATION OF VEDAS from MAHRISHI DAYANANDA SARASWATI(3)

krmshah

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

सनातन धर्म की जय हो |