रविवार, 28 मार्च 2010

Kbirdas - Kabirdas

Kbirdas - Kabirdas


कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। Many are on किंवदन्तियाँ birth of Kabir. कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। According to some of the blessings of Swami Ramanand Kashi was born to a widow Brahmani, which mistakenly gave blessings to Putrwati Ramanand ji. ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। To throw the newborn Lhrtara Brahmani rhythm back.

कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। Kabir's parents - father is not sure about that one opinion Kabir "Nima" and "Niru 'was real child or just Niru and Nima follow them - it was nutrition. It is said that this child weavers Niru Lhrtara found lying on rhythm, which she brought her home and follow it - nurtured. बाद में यही बालक कबीर कहलाया। Later the same lad Khlaya Kabir.

कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है - Kabir has presented himself as the weavers --

"जाति जुलाहा नाम कबीरा "Caste weaver named kabira

बनि बनि फिरो उदासी।' Bni Bni return sadness. "



कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। Kashi's belief that the origin of Pnthiyon Kabir Kabir born in the lotus pond Lhrtara Manohar was as a child above the flower. ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म का ज्ञान हुआ।पचता नही क्यों की यह भी कहा जाता है की एक दिन कबीर पञ्चगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े थे, रामानन्द जी उसी समय गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। It is said that Kabir was a Muslim by birth and youth from the influence of Swami Ramanand had knowledge of the Hindu religion. Digested because it is said that not one day fall on the stairs of the pier पञ्चगंगा Kabir, Ramanand G Stairs to landing Gangasnan same time that his legs fell Kabir's body. उनके मुख से तत्काल `राम-राम' शब्द निकल पड़ा।यदि कबीर जी मुसलमान होते राम राम ना कहते इतना बड़ा ज्ञानी कबीर धर्म परिवर्तन की सोच ही नही सकता था ,और रामानन्द जी किसी का धर्म परिवर्तन नही करवा सकते थे .क्यों की शस्त्र आज्ञा ही एसिहे की दुसरे का धर्म कितनाभी उतम क्यों ना हो उसे देख कर अपना धर्म नही बदलना चाहिए ' उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। His face immediately `Ram - Ram 'word was out. If not, says Ram Ram Kabir are G Muslims converting to such a knowledgeable Kabir could not imagine, and not get could convert any Ramanand law. Why Arms permission of the other's religion Sihe Why not Kitnabi Utm seeing him change his religion should not be 'initiated the Ram Kabir - Mntr accepted and took master accepts his Ramanand ji. कबीर के ही शब्दों में- `हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये'। Kabir's own words - `We're Those gone Casi appear, Ramanand Chetaye '. अन्य जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि कबीर ने हिंदु-मुसलमान का भेद मिटा कर हिंदू-भक्तों तथा मुसलमान फक़ीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया। Other legends have known that Kabir Hindu - Muslims and Hindus to erase differences - and both devotees and the presence of Muslims Fkhiron absorb the good things done.

जनश्रुति के अनुसार कबीर के एक पुत्र कमल तथा पुत्री कमाली थी। According to one son Kamal and daughter of Kabir Jnsruti was Kmali. इतने लोगों की परवरिश करने के लिये उन्हें अपने करघे पर काफी काम करना पड़ता था। For bringing so many people had to do enough work on their looms. साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था। Had lived in the house gathering sage of sages.



कबीर को कबीर पंथ में, बाल- ब्रह्मचारी और विराणी माना जाता है। Kabir Kabir Panth, the hair - is considered celibate and Virani. इस पंथ के अनुसार कामात्य उसका शिष्य था और कमाली तथा लोई उनकी शिष्या। According to the order and Kamaty his disciple and plaid Kmali his disciple. लोई शब्द का प्रयोग कबीर ने एक जगह कंबल के रुप में भी किया है। Plaid term as Kabir also has a space blanket. वस्तुतः कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे। Kabir's wife and child were both really. एक जगह लोई को पुकार कर कबीर कहते हैं :- Kabir says the dough for a place to call: --

"कहत कबीर सुनहु रे लोई। "Ray plaid Sunhu Kht Kabir.

हरि बिन राखन हार न कोई।।' Hari Bin no Rakn lost .. "

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे- Read Kabir - were not written --

`मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।' `No Cuvo Kagd ink, pen Ghi Nhin hands."



उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। He wrote no books himself, wrote her mouth Bake and his followers. आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। All your thoughts are echoed Ramanam glory. वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। They believe in one God and ritual were the anti deep. अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। Embodiment, statue, Lent, Eid, mosque, temple, etc. They were not considered.

कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न-भिन्न है। Kabir's name gets the number of different texts - vary depending on different articles - is different. एच.एच. Ac.acl विल्सन के अनुसार कबीर के नाम पर आठ ग्रंथ हैं। According to Wilson's eight works in the name of Kabir. विशप जी.एच. Bisp G. H. वेस्टकॉट ने कबीर के ८४ ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की तो रामदास गौड ने `हिंदुत्व' में ७१ पुस्तकें गिनायी हैं। Kabir's list of the 84 texts submitted Vestcot Ramadoss Gud So the `Hindutva 'is in 71 books Ginaii.

कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। Voice of the collection of Kabir `invoice 'is known. इसके तीन भाग हैं- रमैनी, सबद और सारवी यह पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, व्रजभाषा आदि कई भाषाओं की खिचड़ी है।इनको सिख पन्थ में इनकी वाणी को गुरु का द्र्जादियाग्या परन्तु कबीर जी को भगत का दर्जा मिला गुरु का दर्जा इन्होंने कभी नही स्वीकारा Its three parts - Rmaini, Sbd and Sarvi this Punjabi, Rajasthani, standing bid, Awadhi, Oriental, etc. Wrjbhasha many languages is mush. Them their voice in the Panth Sikh guru status Dragadiagya but master of Bhagat Kabir ji He never accepted the status



कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं। Kabir divine friend, mother, father and husband as we'll see. यही तो मनुष्य के सर्वाधिक निकट रहते हैं। That most humans are near. वे कभी कहते हैं- They say --

`हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया' तो कभी कहते हैं, `हरि जननी मैं बालक तोरा' Hrimor Piu `I Bhuria Ram 'and sometimes says,` God creates children Tora I'

उस समय हिंदु जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। Hindu Muslim terror on the people at that time was the killer stalking. कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। Kabir made his cult this manner systematic bias towards which Muslim populations do not naturally become their followers. उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। He kept his language simple and understandable so that he could reach the common man. इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई। This has facilitated both Sampradayon mutual union. इनके पंथ मुसलमान-संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे। Their cult Muslims - were opposed to the culture and Gobkshn.



कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। Kabir was dear life and peaceful non-violence, truth, morality, etc., was an admirer of properties. अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है। Its simplicity, sage and saint nature because nature is happening today in foreign countries, their respect.

कबीर का पूरा जीवन काशी में ही गुजरा, लेकिन वह मरने के समय मगहर चले गए थे। वह न चाहकर भी, मगहर गए थे। Kabir's entire life spent in Kashi, but at the time of death was gone Maghar. Chahkr he not also, were Maghar. वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति की मार ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। Hit by fame and fame in old age has a lot of pain. उसी हालत में उन्होंने बनारस छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं। In the same condition they left Varanasi and introspection and to Atmprikshn different parts of the country made the trips. कबीर मगहर जाकर दु:खी थे: Kabir Maghar and sad were:

"अबकहु राम कवन गति मोरी। "Mori Abkhu Ram Kvn speed.

तजीले बनारस मति भई मोरी।।'' Well ..''Mori Tjile Banaras Mti

कहा जाता है कि कबीर के शत्रुओं ने उनको मगहर जाने के लिए मजबूर किया था। It is said that Kabir's enemies had forced them to Maghar. वे चाहते थे कि कबीर की मुक्ति न हो पाए, परंतु कबीर तो काशी मरन से नहीं, राम की भक्ति से मुक्ति पाना चाहते थे: They wanted the freedom not found Kabir, Kabir but not so Mrn Kashi, Ram wanted to get rid of devotion:

"जौ काशी तन तजै कबीरा "Tja barley Kashi body kabira

तो रामै कौन निहोटा।'' So who Nihota Rama.''

अपने यात्रा क्रम में ही वे कालिंजर जिले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। They order their travel in the city reached Pithurabad Kalinjr district. वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। Ramakrishna was a small temple there. वहाँ के संत भगवान गोस्वामी जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। Saint of God was there but their arguments Goswami curious seeker had not yet been fully resolved. संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। Sant Kabir their views - exchange happened. कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया- Kabir's mind a deep impact on them was a witness --

`बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। Had become `Te Bihre ran, his Krha Bachchan.

करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।' Krha Bedn Cason tells the Krha know .. "

वन से भाग कर बहेलिये के द्वारा खोये हुए गड्ढे में गिरा हुआ हाथी अपनी व्यथा किस से कहे ? Forest lost by run away from Bheliye elephant lying in the ditch which tells their plight?

सारांश यह कि धर्म की जिज्ञासा सें प्रेरित हो कर भगवान गोसाई अपना घर छोड़ कर बाहर तो निकल आये और हरिव्यासी सम्प्रदाय के गड्ढे में गिर कर अकेले निर्वासित हो कर ऐसी स्थिति में पड़ चुके हैं। Summary that are inspired by religious curiosity Sen left his house outside St God came out and falling into the Pit of Sect Hriwyasi alone be in this situation have to be deported.

कबीर आडम्बरों के विरोधी थे। Kabir was opposed to Admberon. मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करती उनकी एक साखी है - Their idolatry does target have a witness --

पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौंपहार। Hari Pahn Puge Milan, I Pugunphar.

था ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।। Te Chaki was so good, Jase Khay PC world ..

११९ वर्ष की अवस्था में मगहर में कबीर का देहांत हो गया। कबीरदास जी का व्यक्तित्व संत कवियों में अद्वितीय है। Kabir at the age of 119 died in Maghar. Kbirdas law's personality is unique in Sant poets. हिन्दी साहित्य के १२०० वर्षों के इतिहास में गोस्वामी तुलसीदास जी के अतिरिक्त इतना प्रतिभाशाली व्यक्तित्व किसी कवि का नहीं है।सनातन विचारों में उनकी आस्था रही , 1200 years in the history of Hindi literature in addition to G Goswami Tulsidas poet is not so much a genius. Eternal ideas is their faith,

सोमवार, 15 मार्च 2010

टिपणी


safat alam ने कहा…
मित्र ! सनातन धर्म जिसकी आप चर्चा कर रहे हैं वही इस्लाम है जिसके मानने वाले आज केवल मुसलमान हैं। इस धर्म में मूर्तिपूजा वर्जित है, इस धर्म में कल्कि अवतार की प्रतीक्षा हो रही है। और यह सब इस्लाम का गुण है क्योंकि अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद ही कल्की अवतार हैं। आपलोग कहाँ भटक रहे हैं ? ज़रूरत है कि सत्य की खोज करके अपने वास्तविक धर्म का पालन करें। इस्लाम आपका धर्म है आपके पैदा करने वाले का उतारा हुआ नियम है।
naveentyagi ने कहा…
तो बोलो सनातन धर्म की जय
जयराम “विप्लव” { jayram"viplav" } ने कहा…
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें, धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें, कलम के पुजारी अगर सो गये तो ये धन के पुजारी वतन बेंच देगें। हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में प्रोफेशन से मिशन की ओर बढ़ता "जनोक्ति परिवार "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ ,
mukesh ने कहा…
very good
kshama ने कहा…
Swagat hai!
संगीता पुरी ने कहा…
इस नए चिट्ठे के साथ हिन्‍दी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

सनातन धर्म के विरोध में

सनातन धर्म के विरोध में नित्य नये प्रहार किए जाते हें ;आज कल माननीय न्यायेयाल्ये द्वारा ऐसा फेसला आगया हे जो भारतीय शुद्ध संस्कृति पर असहनीय प्रहार कहा जा सकता हे ;स्म्लेंगिकता पर आया यह फेसला इतना भी विरोध के योग्य न होता यदि सनातन नियमों को ध्यान में रखा गया होता सनातन धर्म पति पत्नी को भी सार्वजनिक तोर पर सार्वजनिक स्थलों पर किसी भी अश्लीलता को स्वीकार नही करता हे इसी सिधांत को समझाने हेतु कहावत बनी की गुड यदि घर का ही क्यों नहो छुपा कर खाना चाहिए परन्तु इस विषय को टी.वी.पर मुर्खता पूर्ण ढंग से प्रसारित किया गया रामदेव नामक योग गुरु को जूते खाने के लिए बिठा दिया गया खूब भिगो -भिगो कर जूते मारे गये राम देव की भी मुर्ख ता देखिये यो तो धर्म शास्त्रों को मानो समझते ही नही हें उनको शायद पता ही नही की प्रकृति का नियम हे की उस में परिवर्तन होना ही हे सो होगया आज जब प्रकृतिक परिवर्तन हो गया तब धर्म गुरु नींद से जाग उठे अपना सिहासन डोलता देख इनको आज समाज को शक्षित करने की जरूरत समझ में आई जरा अतीत में जाकर देखे सिवाए धन इकट्ठा करने के इन पाखंडियों ने समाज को कितना उन की सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर रखा हे ऊची-ऊँची स्टेजे जो राजा महाराजाओं के लिए बनती थीं आज संतों के लिए बनतीं हें इस परिवर्तन को तो रोका नही गया जमीन पर आसन लगाने वाले धर्म गुरु सिघासनो पर बैठ ने ल्ग्गये यह तो वही बात हुई की एक शराबी अन्य शराबियों  से कहें की शराब  पीनी  बुरी  बात होती हे ?

राम राम का नाम किसे नही पता |

राम नाम की महिमा से पटे पडे हें ग्रन्थ हमारे
न जाने क्यों हम समझ नही पाते
कलयुग में नाम का हे महत्व

नाम दान देने वालों की  भी कोई कमी नही हे |
जो नाम मिला जन्म से बस उसी को समझने की कमी हे |
राम राम का नाम किसे नही पता |
पाने को इसे फिर जाने कहां चला |
बहुत होशियार बनता था |
जा फंसा वहां , जो पहले ही लालची था |
नाम दान के नाम पर अपना समूह बना रहा हे |
अपनी ताकत वो दिखा रहा हे |

नया साल शानदार होगा.

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मलेशिया की एक अदालत ने सरकार के आदेश को उलटते हुए फ़ैसला सुनाया है कि ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग किया जा सकता है.
सरकार की दलील थी कि ग़ैर मुसलमान यदि अल्लाह शब्द का प्रयोग करेंगे तो देश में अशांति फैल सकती है.
जब  कि अल्लाह शब्द सिर्फ़ इस्लाम से ही संबद्ध नहीं है.खुदा आल्हा ईश्वर सभी का साझा और आखरी पड़ाव है.
अदालत केएक  फ़ैसले के बाद अब पूरे मलेशिया में ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग संभव हो सकेगा.
मामले की सुनवाई के दौरान कैथोलिक ईसाइयों के अख़बार हेराल्ड ने दलील दी थी कि चर्च में अल्लाह शब्द का प्रयोग दशकों से हो रहा है. हेराल्ड ने सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ 2007 में अदालत में अपील दायर की थी.
संदेह
कई मुस्लिम संगठनों ने अल्लाह शब्द के प्रयोग के बारे में कैथोलिक चर्च के आग्रह पर संदेह व्यक्त किया था.
इनका मानना है कि अल्लाह शब्द के प्रयोग के आग्रह से चर्च की मुसलमानों को धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाने की मंशा साफ़ हो जाती है.
उल्लेखनीय है कि मलेशिया में धर्म परिवर्तन अवैध है.ताज़ा विवाद से मलेशिया में समुदायों के बीच तनाव बढ़ सकता है.
हेराल्ड अख़बार ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि मलेशिया के साढ़े आठ लाख कैथोलिकों के लिए नया साल शानदार होगा.
मलेशिया की आधी से ज़्यादा आबादी मलय मुसलमानों की है. बाक़ी आबादी में चीनी और भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है जो कि मुख्यत: ईसाई, बौद्ध और हिंदू धर्मों को मानने वाले हैं.

धर्म और मोक्ष धर्म

धर्म और मोक्ष धर्म

धर्म और मोक्ष धर्म उस बहुदलीय पुष्प की तरह है, जो अर्थ और काम रूपी पंखुडि़यों को सुनियोजित करके मोक्ष-सौरभ बिखेरता है। धर्म इहलोक का नियमन करके परलोक के साथ मन को जोड़ता है। प्रवृत्तिपरक और निवृत्तिपरक विचारों का एक समन्वित प्रयास है धर्म। भारतीय चिंतन परंपरा में धर्म, अर्थ और काम को त्रिवर्ग की संज्ञा दी गई है। त्रिवर्ग इहलोक का पुरुषार्थ है। मनुष्य में जीवन जीने की कला यहीं से आती है। हमारे यहां धर्म को ज्ञान का पर्याय कहा गया है। इस दृष्टि से धर्म मनुष्य का विशिष्ट गुण है। महाभारत की स्पष्ट घोषणा है कि बुद्धिमान लोग त्रिवर्ग को पाने की चेष्टा करते हैं। यदि उनमें से एक ही सुलभ हो तो वे धर्म को ही चुनते हैं, क्योंकि धर्म के बिना अर्थ और काम कतई पालनीय नहीं है: धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते। भारतीय आचारमीमांसा की मान्यता है कि धर्म जीवन का प्रस्थान बिंदु है और मोक्ष गंतव्य बिंदु। सर्वप्रथम शांत वातावरण में सुधी गुरु की कृपा-छाया के तले धर्मशास्त्र का सजग अध्ययन होना चाहिए। धार्मिक मूल्यों को आत्मसात् करने के उपरांत गृहस्थाश्रम में प्रवेश की अनुमति होनी चाहिए। जिसे धर्म का बोध नहीं होगा वह कदाचार के सहारे विपुल धन का संग्रह करेगा और तुच्छ कामनाओं की तृप्ति में धन का अपव्यय करेगा। हमारा धर्मशास्त्र धर्म के प्रखर प्रकाश में धनार्जन की अनुमति देता है और लोकसंग्रह के भाव से जीवन में धन के सदुपयोग की शिक्षा देता है। धर्म उस फिटकरी के सदृश है,जो भोगवाद में निहित वासना को साफ कर देता है और क‌र्त्तव्य कर्म में मनुष्य को नियोजित करता है। इसी तरह वैराग्यवाद में अकर्मता से उसे पृथक कर निष्कामता की ओर प्रवृत्त करता है। यही कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने की कला है, जिसे भगवद्गीता में निष्काम कर्मयोग कहा गया है। भोगवाद का कर्म और वैराग्यवाद की निष्कामता के योग से निष्काम कर्म की धारणा विकसित होती है, जो साधक को मोक्ष की यात्रा करा देती है। संसार मोक्ष के मार्ग में बाधक न होकर साधक है। केवल धर्म के स्निग्ध प्रकाश में संसार के साथ जीवन जीने की कला विकसित कर ली जाए। अनासक्त भाव में आते ही साधक संसार के झंझावात में बुझे हुए दीपक की तरह शांत खड़ा रहता है। यही जीवन्मुक्ति है-निर्वाण है।

धर्म के नाम पर अत्याचार

धर्म के नाम पर अत्याचार


 
2009 में धर्म का नए तरीके से दोहन किया गया एक और जहाँ उसे बाजारवाद के चलते बेचा गया, वहीं उसके माध्यम से आतंक और धर्मांतरण के नए-नए रूप विकसित किए गए। राजनीतिज्ञ, कट्टरपंथी और तथाकथित धार्मिक लोग अच्छे शब्दों में गंदा खेल खेलते रहे। अब राजनीति और आतंक का धर्म से गहरा ताल्लुक हो चला है।

यह कहना कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, अब हास्यास्पद ही लगता है। विभिन्नता में भी एकता है यह नारा भी अब चुभने लगा है। भारत में कोई भी सरकार रही हो, उसने भारत की समस्याओं के हल पर गंभीरता से विचार और कार्यवाही कभी नहीं की। गैर-जिम्मेदार राजनीति के चलते हर वर्ष सम्याएँ बढ़ती गई।

धर्म को लेकर कट्टरता तो 2008 में ज्यादा देखने को मिली, लेकिन 2009 में धार्मिक कट्टरता का नया रूप देखने को मिला। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जहाँ हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख लड़कियों से जबरन विवाह करने के मामले प्रकाश में आए, वहीं भारतीय राज्य केरल के 'लव जेहाद' की गूंज भारतीय संसद में भी सुनाई दी। इस्लामिक कट्टरता का सिर्फ यही भयानक रूप देखने को नहीं मिला, खुद मुसलमानों पर भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के नाम पर अत्याचार किए गए।

पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। राख के नीचे आग अभी भी सुलग रही है, ऐसे में 7 दिसंबर 2009 में दिव्यज्योति संगठन के आशुतोष महाराज के सत्संग को लेकर लुधियाना को सिख कट्टरपंथियों की तलवारों ने लहुलुहान कर दिया। सिखों का आरोप है कि आशुतोष महाराज सिख गुरुओं के खिलाफ गलत प्रचार कर रहे हैं, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि वे रामायण और गुरुग्रंथ साहिब की समानता की बात करते हैं। लुधियाना की हिंसा के खिलाफ दमदमी टक्साल और संत समाज ने भी पंजाब बंद का ऐलान किया था।

सिख समाज भी आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को हरियाणा की सरकार और सिखों ने कहा है कि हमें अब हरियाणा की अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चाहिए। सितंबर में हरियाणा के लिए अलग एसजीपीसी की माँग कर रहे सिख नेताओं ने जब कुरुक्षेत्र के प्रतिष्ठित छठी पातशाही गुरुद्वारा की जिम्मेदारी संभाल ली तो इस पर शीर्ष निकाय एसजीपीसी ने इसका कड़ा विरोध किया। बस इसी बात को लेकर पंजाब में हिंसक झड़पे होती रही। यह मामला चल ही रहा था कि राजस्थान के सिखों ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधिन रहना अस्वीकार कर दिया है।

एक दूसरे मामले की बात करें मालेगाँव विस्फोट का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि अक्टूबर माह में दीपावली उत्सव की पूर्व संध्या पर गोवा के मडगाँव शहर में हुए विस्फोट का आरोप हिंदू दक्षिण पंथी संगठन सनातन संस्था पर मड़ा गया। सनातन संस्था ने इस विस्फोट की घटना से खुद को अलग करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया, लेकिन पुलिस का कहना है कि सनातन संस्था की गतिविधियों के केंद्र रामनाथी गाँव स्थित आश्रम से कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिली है।

अब हम बात करते हैं इस्लामिक कट्टरता की, मई माह में तालिबानी आतंकवादियों के खिलाफ जारी आक्रामक अभियान के कारण अफगानिस्तान और स्वात घाटी से बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार पाकिस्तान के पंजाब के सरकारी शिविरों में ठहरे थे, लेकिन अब वे कहाँ हैं ये किसी को पता नहीं। एक प्रतिनिधि मंडल अनुसार उक्त शिविरों में लगभग 3100 प्रवासी परिवार थे, जिनमें से 468 सिख परिवार थे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वर्षों से जारी इस्लामिक हिंसा और अत्याचार के चलते लाखों हिंदुओं ने पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण ले रखी है जिन्हें भारतीय नागरिकता देने का मुद्दा इस साल भी अधर में अटका रहा, लेकिन उन हिंदुओं का क्या,जिन्होंने इस्लाम के डर से 'कबूल है' कह दिया।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इस वर्ष से एक नए तरह का ‍जिहाद चल रहा है, जो हिंदू बहुल इलाके हैं, उनकी स्त्री और भूमि को हड़पा जा रहा है। मानवाधिकार संगठन इस मामले पर चुप है। चुप तो वहाँ की सरकार भी है और भारत सरकार तो इस मामले में धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नजर आती है।

बांग्लादेश में वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारण आज भी वहाँ के बचे हुए हिंदू, बौद्ध और ईसाई समाज के नागरिकों में दहशत का माहौल है। उक्त चुनाव के बाद बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है, जबकि भारत के पूर्वोत्तर में बांग्लादेश से आकर बस गए मुसलमानों ने वहाँ के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। उन्होंने पूरे वर्ष भर छुटपुट हिंसा को अंजाम देकर वहाँ के स्थानीय नागरिकों का जीना दुभर कर रखा है।

असम में सक्रिय 38 गुटों में से करीब 17 गुट बांग्लादेशी मुसलमानों के हैं। घोषित तौर पर इनकी कमान भले ही किसी के भी हाथ में हो, लेकिन उनमें अहम भूमिका बांग्लादेशी मुसलमानों की ही है। ये असम के कई इलाकों में जबरन वसूली करते हैं। इन्हें हरकत उल जिहादी इस्लामी (हूजी) का पूरा समर्थन है। इन आतंकवादी संगठनों ने पूरे राज्य में जाल फैला लिया है। हर जगह उनके 'स्लीपर सेल' मौजूद हैं। 2009 में पूर्वोत्तर में जितने भी विस्फोट हुए उन सभी में 'हूजी' की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

2008 की हिंसा में सुरक्षाकर्मी सहित 1415 लोग मारे गए थे। पूर्वोत्तर के राज्यों में असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम एवं मणिपुर शामिल हैं। 2009 के आँकड़े अभी आना बाकी है। असम में अभी अक्टूबर में ही एक बम धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी। फिर नवंबर में असम के नलबाड़ी में हुए बम धमाकों में सात लोग मारे गए। इस तरह पूरे पूर्वोत्तर राज्य में हर मह छोटे और बड़े बम धमाके होते रहे हैं।

स्टोन कैंसर : देश के हजारों साल पुराने मंदिरों और मठों को जहाँ एक ओर कट्टरपंथ के चलते क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, वहीं कोणार्क के सूर्य मंदिर, पुराने स्मारक, अशोक का स्तंभ, मंडोर की समाधियाँ, बेंगु का माताजी का मंदिर, खजराओं के मंदिर आदि सभी सीलन और खुरचन का शिकार हो गए है। इसी क्षरण के चलते उन्हें स्टोन कैंसर की बीमारी से ग्रस्त माना जाने लगा है। उक्त धार्मिक पुरा संपदाओं के संबंध में 2009 में पुरात्व विभाग की नींद खुली तो अब इनकी देखरेख की योजना बना रही है।

बाबा और गुरु : जहाँ एक ओर सुदर्शन क्रिया को करने के लिए नए नेटवर्क के चलते उनकी ग्रहक संख्या में इजाफा हुआ है, वहीं योग के प्रति बढ़ती रुचि का परिणाम यह हुआ कि बाबा रामदेव सहित अन्य नवागत योग-गुरुओं की चल पड़ी है। दूसरी और इस वर्ष फिर जोर-शोर के साथ तरुण सागर जी कड़वे प्रवचन कहते हुए देखे गए।

जून में श्रीश्री रविशंकर को स्जेंट इस्ज्वान विश्वविद्‍यालय हंगरी ने अपने सर्वोच्च सम्मान 'प्रोफेसर हॉनोरिस कॉजा' (मानद प्रोफेसर) से सम्मानित किया। रविशंकरजी विश्वविद्‍यालय द्वारा आयोजित 10वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्‍य वक्ता थे। इस अवसर पर विश्वविद्‍यालय के उप-डाइरेक्टर प्रो. डॉ. लैस्जलो हॉरनॉक ने उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा।
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रविवार, 7 मार्च 2010

सत्संग सुनने के लिए यहाँ पधारे

सत्संग सुनने के लिए यहाँ पधारे :-http://hariomgroup.googlepages.com/latestsatsang

संत शिरोमणि परम पूज्य श्री आसारामजी बापू के अमृत वचन :-    ना कि भगवानके वचन यह विशेष व्यक्ति के द्वारा उचारित वचन हैं अपनी बुधी के घोड़े दोडाइए आपको इसमें स्वार्थ की बू आये गी |
मन के कहेने में बुध्दी सहायक बन जाती और मन इन्द्रियों के कहेने पे चले तो बुध्दी कमजोर है ..लेकिन विकारी माहोल के समय भी परमात्म प्रसादजा मति है तो बुध्दी मजबूत है....और ऐसी भगवत प्रसाद-जा मति के बिना दुःख नही मिट सकता..!हजारो वर्ष की तपस्या कर ले , हजारो शीर्षासन कर ले , करोडो अब्जो रूपया इकठ्ठा कर ले... लेकिन दुःख नही मिट सकता...यहाँ तक की भगवान साथ में खड़े है तो भी दुःख नही मिट सकता..... अर्जुन का दुःख नही मिटा था...भगवान के दर्शन हो जाते तो भी दुःख नही मिटता.. ..जब भगवान ने गीता का सत्संग दिया तो अर्जुन का दुःख मिटा..
इसलिए जो सत्संग करता है, करने-कराने में भागीदार होता है , वो अपना और अपने ७ पीढियों का कल्याण कर लेता है...सत्संग में आने के लिए और सत्संग समझने के लिए जीवन में व्रत की आवश्यकता है...

यह वचन हैं बापू आसा राम के ७ पिडियों के कल्याण हेतु कोन सत्संग को नही चाहता ,सभी चाहें गे परन्तु बापू जो सत्संग कर के दिखाते हैं उसका स्वरूप भाषण के माहोल जेसा होता है. जहां बापू जोबोलें आपको सुनना ही होगा .श्रवण की उस घड़ी जो प्रश्न आप के मन में उठें उन के जवाब बापू नही दें गे .सत्संग यानि सच का साथ ,सच का साथ तभी होगा जब वहीं समस्त जिज्ञासाओं का समा-धान हो अन्यथा भाषण है जिसमे राशन नही है