सोमवार, 28 दिसंबर 2009

अब पत्थर से टूटा विमान का विंडस्क्रीन

कभी पायलटों की हड़ताल तो कभी एयर होस्टेस के साथ धक्का-मुक्की। कभी उड़ान के दौरान शराब पीकर पंगेबाजी का किस्सा तो कभी टायलेट में छिपकर यात्रा करने वाले व्यक्ति की बरामदगी। एयर इंडिया के साथ इस तरह की विचित्र घटनाएं अब आम हो गई हैं। ताजा घटनाक्रम में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पत्थर टकराने से एयर इंडिया के मुंबई जाने वाले विमान की उड़ान से पहले विंडस्क्रीन टूट गई जिससे यात्रियों को दूसरे विमान से भेजना पड़ा। उड्डयन महानिदेशालय ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं। घटना परसों शाम को हुई। उस वक्त एयर इंडिया का ए-321 विमान दिल्ली से मुंबई की उड़ान (संख्या आईसी 836) की तैयारी कर रहा था और टैक्सीवे-13 से रनवे की तरफ बढ़ रहा था।

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

भोग में रत भी हो सकता है योगी

http://www.chitthajagat.in/gita ki booli - http://gitakibooli.blogspot.com/


योगरतो वा भोगरतो वा संङ्गरतो वा संङ्गविहीना:।



यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दत्येव।।


जब कोई आदमी अध्यात्म में पूरी तरह से स्थिर हो जाता है, फिर वह संसार के किसी भी कोने में चला जाए, उसकी आंतरिक स्थिति पूरी तरह से तृप्त और संतुष्ट बनी रहती है। फिर वह भोग में रहे या योग में, संसार की नजरों में लगेगा वह भोगी है। लेकिन अन्त:करण में वह बिल्कुल भोगी नहीं है। तो भोग में रहो या योग में रहो, संग में रहो या संग विहीन। लेकिन वह आदमी सुखी है -तीन बार बोला नन्दति, नन्दति, नन्दति। शरीर से सुख, मन से सुख, बुद्धि से सुख। जिसका ध्यान, जिसकी एकाग्रता, जिसके दिमाग का एक तार परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ है। नन्दति-नन्दति-नन्दत्येव -वही सुखी है।






लोग सोचते हैं कि जो आदमी भोग में रत है, वह आध्यात्मिक कैसे हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण की 16108 पत्नियाँ होने के बावजूद उनका नाम था नित्य ब्रह्मचारी। दुर्वासा ऋषि हजारों-हजारों टन खाना खा जाते थे, लेकिन उनका नाम था नित्य उपवासी। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भी युद्ध करते वक्त सारे योद्धाओं ने पूरी तरह से सज संवरकर गहने पहन कर युद्ध किए थे। इसका मतलब साफ है कि हमारे शास्त्र किसी भी भोग को बाहरी रूप से अपनाने से कभी भी मना नहीं करते। हां, बात सारी यह है कि जब आप भोग कर रहे हों तो आपकी आन्तरिक स्थिति कैसी है। यदि आन्तरिक स्थिति उसको महत्व देती है तो चाहे बाहर से आप आध्यात्मिक हो, अन्त:करण में आप भोगी होंगे।






दो मित्र थे। शाम का समय था। दोनों ने सोचा शाम कैसे बिताई जाए। तो एक मित्र ने सलाह दी कि हम किसी शराबखाने में चलते हैं। दूसरे मित्र ने सलाह दी, हम कहीं सत्संग सुनने चलते हैं। दोनों अपनी बात पर अडिग रहे। एक शराबखाने में चला गया, दूसरा सत्संग सुनने चला गया। पर सत्संग में जो स्वामी जी थे, उनका प्रवचन उस व्यक्ति को बोर लग रहा था। ध्यान उस सत्संग में बिल्कुल नहीं लग रहा था। पर ध्यान कहां पर था? मदिरालय में चला गया था।






और जो मदिरालय में बैठा व्यक्ति था, वह मदिरालय में तो बैठा था लेकिन सोच रहा था -यार! क्या मैंने जिन्दगी खराब कर ली। अपना सारा जीवन खराब कर लिया। मेरे से बढ़िया तो वह व्यक्ति है जो मन्दिर में बैठा कीर्तन सुन रहा है। तो एक सत्संग में था, लेकिन ध्यान उसका शराब खाने पर था, और एक शराबखाने में था लेकिन उसका ध्यान सत्संग में था।






कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि अध्यात्म के लिए आप शराबखाने चले जाइए। तात्पर्य यह है कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर किधर है। फर्क इससे पड़ता है कि आपका मन और बुद्धि किधर है। जिसका मन परमात्मा पर लगा हुआ है, वही सुखी है। नन्दति-नन्दति-नन्दत्येव। वह सुखी है, ज्ञानी है -चाहे भोग में मगन हो या योग में। संगी साथ हो या अकेला चले।






तो यह हमारे यहां जीवन का सार है कि आप चाहे किसी भी रूप में हों, किसी भी स्तर पर हों, आपका ध्यान परमात्मा पर लगा रहे। आप कहेंगे, यह तो बड़ा मुश्किल है। मुश्किल नहीं है। महत्व की बात है। आप कहेंगे, यह तो संभव नहीं कि हम काम भी करते रहें और परमात्मा पर ध्यान भी लगाकर रखें।






भक्त गर्भवती मां की तरह है। गर्भवती मां उठती है, बैठती है, बोलती है, हँसती है, चलती है, सोती है, खाती है, काम करती है लेकिन उसका एक ध्यान हमेशा अपने गर्भ पर रहता है। भक्त एक बच्चे की तरह है, जिसका जन्मदिन है और जिस दिन उसका जन्मदिन है, वह बच्चा उठता है, बैठता है, सोता है, हंसता है, खाता है, पीता है, लेकिन उसका एक ध्यान अपने जन्मदिन पर लगा रहता है।






कोई बच्चा अपने जन्मदिन पर ध्यान क्यों रखता है? क्योंकि जन्मदिन को वह महत्व देता है। यदि एक मां ध्यान रखती है अपने बच्चे पर तो मतलब है मां अपने बच्चे को महत्व देती है। ऐसे ही संत लोग हमें कहते हैं कि एक ध्यान परमात्मा पर लगाकर रखो।



(विवेक निकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट के सौजन्य से)

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

हम गृहस्थ जीवन में रहकर भी साधुता प्राप्त कर सकते हैं। उक्त उद्गार प्रवचन में स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने भरत प्रसंग पर व्यक्त किए। उन्होंने प्रसंग की चौपाई तात भरत तुम सब विधि साधु को केन्द्रित करते हुए कहा कि भरत के जीवन में क्षमा, धैर्य, करुणा, त्याग, प्रेम व साहस का जो अद्भुत समन्वय रहा वह सबमें होना चाहिए।




उन्होंने कहा कि भगवान राम के वन जाने पर भरत ने अयोध्या की राज व्यवस्था को जिस तरह संभाला वह आज के संदर्भ में अनुकरणीय है। भरत निष्काम भक्ति के प्रतीक हैं। साथ ही उनके मन में जनकल्याण की भावना भरी हुई है। वे भक्ति के माध्यम से समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम एक संयमित जीवन शैली अपनाएँ और स्वयं का एवं समाज का कल्याण करें।



स्वामी जी ने साधुता का अर्थ बताते हुए कहा कि भरत सब प्रकार से साधु हैं,इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि हमें भीतर और बाहर समान रूप से बदलना होगा। अकेले साधु का वेश धारण करने से कोई साधु नहीं हो जाता है। व्यक्ति को भीतर से भी बदलना जरूरी है।




भारत वर्ष का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान इसलिए है कि हमारे यहाँ रामचरित मानस जैसा सद्ग्रंथ है जो हमें जीवन व्यवहार की शिक्षा देता है।

सोमवार, 30 नवंबर 2009

भ्ज्ञान जाने

क्या पत्थर की सात किलो वजनी प्रतिमा पानी पर तैर सकती है?..क्या प्रतिमा के तैरने या न तैरने से आने वाले अच्छे या बुरे समय का पता लगाया जा सकता है? आइए चलते हैं आस्था या अंधविश्वास की इस बार की कड़ी में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने...?


              अपनी राय जरुर दें                                                                                                               मध्यप्रदेश के देवास जिले से 45 किमी दूर हाटपीपल्या गाँव के नृसिंह मंदिर की प्रतिमा प्रतिवर्ष नदी में तैरती है। आखिर कैसे घटित होता है यह चमत्कार |
                                                                                                                                                            भगवान
 ही जाने \



प्रतिवर्ष भादवा सुदी 11 (डोल ग्यारस) पर सेंधला नदी पर पूजा-अर्चना कर पूरे सम्मान के बाद प्रतिमा तैराई जाती है। इस चमत्कार को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुट जाती है, परंतु आज के इस आधुनिक युग में यह बात आश्चर्यजनक लगती है।






नृसिंह मंदिर के प्रमुख पुजारी गोपाल वैष्णव ने कहा कि यदि भगवान की प्रतिमा एक बार तैरती है तो साल के चार माह अच्छे माने जाते हैं और यदि तीन बार तैरे तो पूरा साल अच्छा बीतता है।



यहाँ के निवासी सोहनलाल कारपेंटर का कहना है कि वे भगवान नृसिंह की प्रतिमा के तैरने के चमत्कार को पिछले 20-25 वर्षों से देख रहे हैं और ग्रामवासियों की इस प्रतिमा में अटूट आस्था है।



मंदिर के एक अन्य पुजारी ने कहा कि भगवान का यह चमत्कार हमने अपनी आँखों से देखा है और हम मंदिर के पुजारी ही उक्त प्रतिमा को पानी में तैरने के लिए उतारते है। उस दौरान लाखों लोगों की भीड़ रहती है।






हर डोल ग्यारस पर हाटपीपल्या के स्थानीय नृसिंह मंदिर से ढोल-ढमाके के साथ शाम चार बजे से मंदिर की नृसिंह भगवान की प्रतिमा को लेकर जुलूस शुरू होता है। इस दिन पूरे नगर में हर घर में लौंग का प्रसाद वितरित किया जाता है और नगरवासियों का सम्मान करते हैं। यहाँ पर इस प्रतिमा पर हार चढ़ाने की बोली लगाई जाती है। इसी दिन महिलाएँ इस डोल की पूजा-अर्चना करती हैं। रात को करीब तीन बजे ये डोल पुन: नृसिंह मंदिर में पहुँच जाते हैं।



शाम को ही जुलूस नृसिंह घाट पर पहुँचता है। नृसिंह घाट पर डोल को स्नान कराया जाता है। फिर पानी की पूजा-अर्चना की जाती है। तत्पश्चात्य मुख्य पुजारी गोपालदास वैष्णव, रमेशदास और विष्णुदास वैष्णव पानी का बहाव जाल फेंककर देखते हैं। जाल इसलिए कि एक निश्चित सीमा तक मूर्ति के तैरने के बाद यह यदि डूबने लगे तो जाल से उसकी रक्षा हो।



फिर नृसिंह मंदिर के पुजारी द्वारा मंत्रोच्चार के साथ इस साढ़े सात किलो की प्रतिमा को नदी में छोड़ा जाता है। यह सब नजारा देखकर श्रृद्धालुओं द्वारा गगनभेदी जयकारे लगाए जाते हैं। प्रतिमा को सिर्फ तीन बार ही पानी में छोड़ा जाता है। पिछले साल यह प्रतिमा दो बार तैरी थी, लेकिन इस वर्ष यह केवल एक ही बार तैरी |





कई वर्षों पहले तत्कालीन होलकर महाराज की जिद पर पाषाण प्रतिमा को जब चौथी बार पानी में तैराया गया तो यह प्रतिमा पानी में गायब हो गई थी। फिर मंदिर के पंडित को सपना आया कि अमुक जगह पानी में प्रतिमा है, तब बड़ी मशक्कत के बाद वह प्रतिमा मिली। ऐसे अनेक चमत्कार जुड़े हैं इस प्रतिमा से।



मंदिर में स्थापित नृसिंह भगवान की प्रतिमा नृसिंह पहाड़ से लाई गई है। पहले यह प्रतिमा नृसिंह गढ़ी में खेड़ापति मंदिर में स्थापित थी, लेकिन पिछले लगभग 85 वर्षों से इस प्रतिमा के लिए अलग मंदिर का निर्माण कर विधिवत नृसिंह प्रतिमा स्थापित की गई।



यहाँ के लोगों का मानना है कि अगर नदी में गर्मी के दिनों में पानी पूरा भी सूख जाता है, तब भी डोल ग्यारस आने के पूर्व नदी में बारिश के कारण पानी पुन: भर जाता है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि प्रतिमा तैराने वाले दिन नदी में पानी नहीं रहा हो।



आखिर क्या कारण हो सकता है प्रतिमा के तैरने का...क्या प्रतिमा जिस पत्थर से बनी है, उसका स्वरूप ही ऐसा है या वाकई यह कोई दैवीय चमत्कार है, फैसला आपको करना है.. अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराएँ...



रेल मार्ग : इंदौर से देवास तक रेल मार्ग द्वारा पहुँचकर वहाँ से बस सुविधा उपलब्ध है।

सड़क मार्ग : देवास से 45 किमी दूर तहसील हाटपीपल्या पहुँचने के लिए बस और टैक्सी सुविधा उपलब्ध है।

वायु मार्ग : हाटपीपल्या के सबके पास स्थित है इंदौरClick here to see more news from this city का एयरपोर्ट।

मनो या ना मनो

छत्तीसगढ़ का एक छोटा-सा गाँव लेन्ध्रा। चाहे आप इसे मान्यता कहें या फिर अन्धविश्वास, इस गाँव के लोगों ने असमय मृत्यु से बचने के लिये सत्रह सालों से एक दीये को प्रज्ज्वलित कर रखा है।




इस गाँव के मुख्य मन्दिर राधा-माधव संकीर्तन आश्रम (जो रायगढ़ से पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित है) में यह दीया पिछले सत्रह सालों से लगातार जल रहा है। लोगों की मान्यता है कि इस दीये के जलने से किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा इस गाँव पर नहीं पड़ेगी।



इस गाँव के एक श्रद्धालु भारत पाण्डेय का कहना है कि वे हर साल यहाँ आते हैं और अपने परिवार को भी साथ लाने की कोशिश करते हैं। वे चौदह साल पहले यहाँ आए थे और तब से आज तक लगातार यहाँ आ रहे हैं। उन्हें यहाँ आना काफी अच्छा लगता है।



इस दीये को जलाए रखने के लिए जो खर्च होता है, उसे पूरा गाँव मिलकर उठाता है।




इस मन्दिर के पुजारी मुकेश कुमार के अनुसार, इस दीये को जलाने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु यहाँ आते हैं और मन्दिर में काफी मात्रा में दान-दक्षिणा भी देते हैं। उनके लिए इस पैसे से मुफ्त भोजन का भी इंतजाम किया जाता है। इस दीये को जलाए रखने के लिये दो व्यक्तियों को भी नियुक्त किया गया है।



अधिकतर ग्रामीण मानते हैं कि इस दीये के प्रज्ज्वलित रहने से सत्रह सालों से इस गाँव पर किसी तरह की प्राकृतिक आपदा नहीं आई है। करीब 3,500 लोगों की आबादी वाला यह गाँव आसपास के क्षेत्रों में भी श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।

जै वैष्णो माता, मैया जै वैष्णो माता ।


हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता ॥

जै वैष्णो माता…

शीश पे छत्र बिराजे, मूरतिया प्यारी ।

गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी ॥

जै वैष्णो माता…

ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे ।

सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे ॥

जै वैष्णो माता…

सुंदर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे ।

बार-बार देखन को, ऐ मां मन चावे ॥

जै वैष्णो माता…

भवन पे झण्डे झूले, घंटा ध्वनि बाजे ।

ऊंचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे ॥

जै वैष्णो माता…

पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा ।

दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा ॥

जै वैष्णो माता…

जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे ।

उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे ॥

जै वैष्णो माता…

इतनी स्तुति निशदिन, जो नर भी गावे ।

कहते सेवक ध्यानू, सुख संपति पावे ॥

जै वैष्णो माता…
gitakiboli आइये ऋषि से जानें कुछ प्रश्नों के उत्तर - वेदोत्पत्तिविषयः (3)


Submitted by AnandBakshi on Wed, 2009-06-03 12:38. Vedic Philosophy

प्रश्न - ‍ईश्वर ने मनुष्यों को स्वाभाविक ज्ञान दिया है सो सब ग्रन्थों से उत्तम है, क्यो‍कि उसके बिना वेदों के शब्द, अर्थ और सम्बन्ध‌ का ज्ञान कभी नहीं हो सकता
और जब उस ज्ञान की क्रम से वृद्धि होगी, तब मनुष्य लोग विद्यापुस्तकों को भी रच लेंगे, पुनः वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से क्यों माननी ?



उत्तर - जो प्रथम दृष्टान्त बालक का एकान्त में रहने का और दूसरा वनवासियों का भी कहा था, क्या उनको स्वाभाविक ज्ञान ईश्वर ने नहीं दिया है ? वे स्वाभाविक ज्ञान से विद्वान क्यों नहीं होते ? इससे यह बात निश्चित है कि ईश्वर का किया उपदेश जो वेद है, उसके बिना किसी मनुष्य को यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता
जैसे हम लोग वेदों को पढ़े, विद्वानो की शिक्षा और उनके किये ग्रन्थों को पढ़े बिना पण्डित नहीं होते, वैसे ही सृष्टि के आदि में भी परमात्मा जो वेदों का उपदेश न करता तो आज पर्यन्त किसी मनुष्य को धर्मादि पदार्थों की यथार्थ विद्या नहीं होती
इससे क्या जाना जाता है कि विद्वानों की शिक्षा और वेद पढ़े बिना केवल स्वाभाविक ज्ञान से किसी मनुष्य का निर्वाह नहीं हो सकता
जैसे हम लोग अन्य विद्वानों से वेदादि शास्त्रों के अनेक प्रकार के विज्ञान को ग्रहण करके ही पीछे ग्रन्थों को भी रच सकते हैं, वैसे ही ईश्वर के ज्ञान की भी अपेक्षा सब मनुष्यों को अवष्य है
क्योंकि सृष्टि के आरम्भ में पढ़ने और् पढ़ाने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी, तथा विद्या का कोई ग्रन्थ भी नहीं था
उस समय ईश्वर के किये वेदोपदेश के बिना विद्या के नहीं होने से कोई मनुष्य ग्रन्थ की रचना कैसे कर सकता ? क्योंकि सब मनुष्यों को सहायकारी ज्ञान में स्वतन्त्रता नहीं है
और स्वाभाविक ज्ञानमात्र से विद्या की प्राप्ति किसी को नहीं हो सकती
इसीलिए ईश्वर ने सब मनुष्यों के हित के लिये वेदों की उत्पत्ति की है




और जो यह कहा था कि अपना ज्ञान सब वेदादि ग्रन्थों से श्रेष्ठ है सो भी अन्यथा है, क्योंकि वह स्वाभाविक जो ज्ञान है सो साधनकोटि में है
जैसे मन के संयोग के बिना आंख से कुछ भी नहीं देख पड़ता तथा आत्मा के संयोग बिना मन से भी कुछ नहीं होता, वैसे ही जो स्वाभाविक ज्ञान है सो वेद और विद्वानों की शिक्षा के ग्रहण करने में साधन मात्र ही है, तथा पशुओं के समान व्यवहार का भी साधन है, परन्तु वह स्वाभाविक ज्ञान धर्म, अर्थ, काम और मोक्षविद्या का साधन स्वतन्त्रता से कभी नहीं हो सकता




महर्षि दयानन्द सरस्वती

(ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका)

Q/A on CREATION OF VEDAS from MAHRISHI DAYANANDA SARASWATI(3)

krmshah

शनिवार, 28 नवंबर 2009

कलयुगी धंदा

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय

ज्ञान बाँटने का धंदा जोरों पर है |
संस्थाएं ,आश्रम, गुरु,अब विश्वविद्यालय
जिन की कोई आवश्यकता ही नही |
उनपर खर्च होते हैं करोड़ों |
सोचो ओरत को सम्भोग करना कोन सिखाताहै?|
उसे यह ज्ञान कहाँ से आता है? फिर यह सब क्या है?









-नूपुर दीक्षित

“परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।”



इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं।



यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।



इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं।



दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा।



उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया।



इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी।



बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया।



इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।

मानों या न मानो

अंबा माताजी के पास गब्बर पर्वतमाला की गुफा में रह रहे चुनरी वाले माताजी (पुरुष साधक)पिछले 65 साल से बिना कुछ खाए-पिए रहने तथा दैनिक क्रियाओं को भी योग की शक्ति से रोक देने की वजह से चिकित्सा विज्ञान के लिए एक चुनौती बन गए हैं। मुंबई तथा अहमदाबाद के चिकित्सकों ने सीसीटीवी के बीच उनकी जाँच भी की, लेकिन उनके इस रहस्य पर से पर्दा उठाने में वे भी नाकाम रहे। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इसमें रुचि दिखाई है, यदि माताजी के ऊर्जा का स्रोत का पता चल जाता है तो शायद यह अंतरिक्ष यात्रियों एवं सेना के जवानों के लिए कारगर साबित होगा।



गाँधीनगर के चराड़ा गाँव निवासी प्रहलाद भाई जानी कक्षा तीन तक पढे़ लिखे हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, और उन्होंने घर त्याग कर जंगलों में रहना शुरू कर दिया। जानी का दावा है कि दैवीय कृपा तथा योग साधना के बल पर वे करीब 65 वर्ष से बिना कुछ खाए पिए-जिंदा हैं। इतना ही नहीं मल-मूत्र त्यागने जैसी दैनिक क्रियाओं को योग के जरिए उन्होंने रोक रखा है। स्टर्लिंग अस्पताल के न्यूरोफिजिशियन डॉ. सुधीर शाह बताते हैं कि जानी के ब्लैडर में मूत्र बनता है, लेकिन कहाँ गायब हो जाता है इसका पता करने में विज्ञान भी अभी तक विफल ही रहा है। रक्षा मंत्रालय के डॉ. सेल्वा मूर्ति की अगुआई में 15 चिकित्सकों की टीम ने लगातार दस दिन तक उनका वीडियो कैमरों के बीच चिकित्सकीय परीक्षण भी किया, लेकिन उनके समक्ष आज भी चुनरी वाले माताजी का यह केस एक यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है। डॉ. शाह बताते हैं कि पहली बार माताजी का मुंबई के जे.जे. अस्पताल में परीक्षण किया गया था, लेकिन इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका।



वे बताते हैं कि यह माताजी कभी बीमार नहीं हुए, उनकी शारीरिक क्रियाएँ सभी सामान्य रूप से क्रियाशील हैं। चिकित्सक समय-समय पर उनका परीक्षण भी करते हैं, लेकिन ब्लड प्रेशर, हार्ट बीट आदि सभी सामान्य ही पाई गई हैं। चिकित्सकीय परीक्षण के दौरान डिस्कवरी चैनल ने भी उन पर एक लघु फिल्म तैयार की है। इसके अलावा डॉ. शाह ने भी माताजी के तथ्यों को केस स्टडी के रूप में अपनी वेबसाइट पर डालकर दुनिया के चिकित्सकों को इस पहेली को सुलझाने की चुनौती दी है, लेकिन फिलहाल तक कोई भी इस पहेली को नहीं सुलझा पाया है।



अहमदाबाद में व्याख्यान देने आए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अब इस केस को हाथ में लिया है वे इसका फिर से वैज्ञानिक परीक्षण कराना चाहते हैं। यदि जानी के ऊर्जा स्रोत का पता चल जाता है तो चिकित्सकों का दावा है कि इससे अंतरीक्ष यात्रियों तथा सेना के जवानों की खाद्य समस्या हल हो सकती है साथ ही अकाल एवं भुखमरी जैसी समस्या को भी समाप्त किया जा सकता है।



वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. उर्मन ध्रूव बताते हैं कि जानी का शरीर पूरी तरह स्वस्थ है, चिकित्सा विज्ञान के समक्ष वे अब तक अबूझ पहेली बने हुए हैं। उनकी एक भी कोशिका में चर्बी का कोई अंश नहीं है। इसे दैवीय कृपा नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनके शरीर में ऊर्जा का कोई अतिरिक्त स्रोत जरूर है।- नईदुनिया
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सनातन धर्म

सनातन धर्म का सत्य


(बुधवार 2 सितंबर 2009)

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।


कुछ लोग कहते हैं कि राम भगवान नहीं थे, वे तो राजा थे। कुछ का मानना है कि वे एक का‍‍ल्पनिक पात्र हैं। वे कभी हुए ही नहीं। वर्तमान काल में राम की आलोचना करने वाले कई लोग मिल जाएँगे। राम के खिलाफ तर्क जुटाकर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। इन पुस्तक लिखने वालों में वामपंथी विचारधारा और धर्मांतरित लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया है। तर्क से सही को गलत और गलत को सही सिद्ध किया जा सकता है। तर्क की बस यही ताकत है। तर्क वेश्याओं की तरह होते हैं।विचलित हुई इनकी बुधी भ्रम को बुना करती हे और ब्रह्म से दूर हो जाती है |   
               


उनकी आलोचना स्वागतयोग्य है। जो व्यक्ति हर काल में जिंदा रहे या जिससे लोगों को खतरा महसूस होता है, आलोचना उसी की ही होती है। मृत लोगों की आलोचना नहीं होती। जिस व्यक्ति की आलोचना नहीं होती वे इतिहास में खो जाते हैं।



आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की।



राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है।



मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।



कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्य जगदगुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का कार्य किया था।



इस के अलावा नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोकसंस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम जिंदा है। दुनिया भर में बिखरे शिलालेख, भित्ति चित्र, सिक्के, रामसेतु, अन्य पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन भाषाओं के ग्रंथ आदि से राम के होने की पुष्टि होती है।



आलोचकों को चाहिए कि वे इस तरह और इस तरह के तमाम अन्य शोधों की भी आलोचना करें और इन पर भी सवाल उठाएँ, तभी नए-नए शोधों को प्रोत्साहन मिलेगा। एक दिन सारी आलोचनाएँ ध्वस्त हो जाएँगी। क्यों? क्योंकि द्वेषपूर्ण आलोचनाएँ लचर-पचर ही होती हैं। दूसरे के धर्म की प्रतिष्ठा गिराकर स्वयं के धर्म को स्थापित करने के उद्देश्य से की गई आलोचनाएँ सत्य के विरुद्ध ही मानी जाती हैं।



कहते हैं कि किसी देश, धर्म और संस्कृति को खत्म करना है तो उसके इतिहास पर सवाल खड़े करो, फिर तर्क द्वारा इतिहास को भ्रमित करो- बस तुम्हारा काम खत्म। फिर उसे खत्म करने का काम तो उस देश, धर्म और संस्कृति के लोग खुद ही कर देंगे।



अंग्रेज इस देश और यहाँ के धर्म और इतिहास को इस कदर भ्रमित कर चले गए कि अब उनके कार्य की कमान धर्मांतरण कर चुके लोगों, राजनीतिज्ञों व कट्टरपंथियों ने सम्भाल ली है।



विखंडित करने के षड्यंत्र के पहले चरण का परिणाम यह हुआ कि हम अखंड भारत से खंड-खंड भारत हो गए। एक समाज व धर्म से अनेक जाति और धर्म के हो गए। आज का जो भारतीय उपमहाद्वीप है और वहाँ की जो राजनीति तथा समाज की दशा है वह अंग्रेजों की कूटनीति का ही परिणाम है।



जब कोई प्रशासन और सैन्य व्यवस्था, व्यक्ति या पार्टी 10 वर्षों में देश को नष्ट और भ्रष्ट करने की ताकत रखता है तो यह सोचा नहीं जाना चाहिए कि 200 साल के राज में अंग्रेजों ने क्या किया होगा? अंग्रेजों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन सब कुछ छीनकर।



यह सोचने वाली बात है कि हम दुनिया कि सबमें पुरानी कौम और पुराने मुल्कों में गिने जाते हैं, लेकिन इतिहास के नाम पर हमारे पास मात्र ढाई से तीन हजार वर्षों का ही इतिहास संरक्षित है। हम सिंधु घाटी की सभ्यता से ही शुरू माने जाते हैं। हमें आर्यों के बाद सीधे बुद्धकाल पर कुदा दिया जाता है। बीच की कड़ी राम और कृष्ण को किसी षड्यंत्र के तहत इतिहास की पुस्तकों में कभी शामिल ही नहीं किया गया।

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राम जी की वंशावली
हिंदू धर्म में राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।



मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी।



रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है:- ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के विवस्वान और विवस्वान के वैवस्वतमनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।



इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।



भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।



रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। वा‍ल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।


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'राम' यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। राम कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है।


राम मेरी आत्मा
राम ने 14 वर्ष वन में रहकर भारतभर में भ्रमण कर भारतीय आदिवासी, जनजाति, पहाड़ी और समुद्री लोगों के बीच सत्य, प्रेम, मर्यादा और सेवा का संदेश फैलाया।(क्यों की उन्हों ने सनातन धर्म की स्थापना हेतु अवतार लिया था |इन क्षत्रों में धर्म लुप्त हो चूका था) यही कारण रहा की राम का जब रावण से युद्ध हुआ तो सभी तरह की अनार्य जातियों ने राम का साथ दिया। यह वह काल था जबकि लोगों में किसी भी प्रकार की जातिवादी सोच नहीं थी। लोग सिर्फ दो तरह की सोच में ही बँटे थे- यक्ष और रक्ष जिसे सूर और असुर या देव और दानव कहा जाता था।



जन्म: राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म आज से 7122 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। अन्य विशेषज्ञों अनुसार राम का जन्म आज से लगभग 9,000 वर्ष (7323 ईसा पूर्व) हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।



राम का परिचय : अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र थे भगवान राम। दशरथ की तीन पत्नीयाँ थी- कौशल्या, सुमीत्रा और कैकयी। राम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न। राम कौशल्या के पुत्र थे। सुमीत्रा के लक्ष्मण और शत्रुध्न दो पुत्र थे। कैकयी के पुत्र का नाम भरत था।



लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला, शत्रुध्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी का नाम मांडवी था। सीता और उर्मिला राजा जनक की पुत्रियाँ थी और मांडवी और श्रुत‍कीर्ति कुशध्वज की पुत्रियाँ थी। लक्ष्मण के अंगद तथा चंद्रकेतु नामक दो पुत्र थे।



राम का विवाह मिथिला के नरेश राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ। सीता स्वयंवर में रावण भी आया था। विवाह बाद कैकयी के कहने पर राम को दशरथ ने 14 वर्ष के वनवास में भेज दिया। वनवास में सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए। इधर कैकयी ने भारत को अयोध्या का राजा बना दिया।



वनवास के दौरान लक्ष्मण ने रावण की बहिन सूर्पणखा की नाक काट दी थी। सीता स्वयंवर में अपनी हार और सूरपर्णखा की नाक काटने का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण कर लिया। वनवास के दौरान ही राम को सीता से दो पुत्र प्राप्त हुए- लव और कुश। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए ‍जो महाभारत युद्ध में कोरवों की ओर से लड़े थे।



राम ने सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए संपाति, हनुमान, सुग्रीव, विभिषण, मैन्द, द्विविद, जाम्बवंत, नल, नील, तार, अंगद, धूम्र, सुषेण, केसरी, गज, पनस, विनत, रम्भ, शरभ, महाबली कम्पन (गवाक्ष), दधिमुख, गवय और गन्धमादन आदि की सहायता से सेतु बनाया और लंका पर चढ़ाई कर दी। लंका में घोर युद्ध हुआ और पराक्रमी रावण का वध हो गया। तब पुष्पक विमान द्वारा रावण सीता सहित पुन: अयोध्या आ गए।



इस सारे घटनाक्रम में हनुमानजी ने राम का बहुत साथ दिया इसीलिए हनुमानजी राम के अनन्य सहायक और भक्त सिद्ध हुए। भगवान राम को हनुमान ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे।



महत्वपूर्ण घटनाक्रम: गुरु वशिष्ठ से शिक्षा-दिक्षा लेना, विश्वामित्र के साथ वन में ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करना और राक्षसों का वध, राम स्वयंवर, शिव का धनुष तोड़ना, वनवास, केवट से मिलन, लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा (वज्रमणि) की नाक काटना, खर और दूषण का वध, लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा खींचना, स्वर्ण हिरण-मारीच का वध, सीता हरण, जटायु से मिलन।



कबन्ध का वध, शबरी से मिलन, हनुमानजी से मिलन, सुग्रीव से मिलन, दुन्दुभि और बाली का वध, संपाति द्वारा सीता का पता बताना, अशोक वाटिका में हनुमान द्वारा सीता को राम की अँगुठी देना, हनुमान द्वारा लंका दहन, सेतु का निर्माण, लंका में रावण से युद्ध, लक्ष्मण का मुर्छित होना, हनुमान द्वारा संजीवनी लाना और रावण का वध, पुष्पक विमान से अयोध्या आगमन।



रामायण : रामायण को वा‍ल्मीकि ने राम के काल में ही लिखा था। इसीलिए इस ग्रंथ को सबसे प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। रामायण और महाभारत यही ग्रंथ मूलत: हिंदू इतिहास की प्रमाणिक जानकारी देते हैं। यह मूल संस्कृत में लिखा गया ग्रंथ है।



रामचरित मानस : रामचरित मानस को गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा जिनका जन्म संवत्‌ 1554 को हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधि भाषा में की। रामायण से अधिक इस ग्रंथ की लोकप्रियता है।



अन्य भारतीय रामायण : तमिल भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण आदि भारतीय भाषाओं में प्राचीनकाल में ही रामायण लिखी गई।



विदेशी रामायण : कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), मलयेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रचलीत है। इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहाँ की भाषा में रामायण लिखी गई है।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

कतरने





ओबामा ने पहली बार भारत को शक्ति माना



24 Nov 2009, 2329 hrs IST,भाषा

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वॉशिंगटन ।। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर भारत को एक शक्ति बताया। उन्होंन

े कहा कि भारत परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और परमाणु हथियार मुक्त दुनिया के साझे नडरिए में अमेरिका का पूरी तरह साझीदार हो सकता है।



ओबामा ने अपने प्रशासन के पहले सरकारी मेहमान के तौर पर वाइट हाउस में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्वागत किया। इस दौरान दोनों नेताओं के भाषणों में परमाणु जगत की बात आई। ओबामा ने कहा कि शक्तियों के तौर पर हम दुनिया के सबसे घातक हथियारों के प्रसार को रोकने में, खुली परमाणु सामग्री को आतंकवादियों से सुरक्षित रखने में और बिना परमाणु हथियारों की दुनिया के साझे नजरिए में पूरी तरह भागीदार बन सकते हैं।



मनमोहन सिंह ने कहा कि हमें आतंकवाद से लड़ने, अपने पर्यावरण को स्वच्छ बनाने और एक परमाणु हथियार मुक्त दुनिया की तरफ बढ़ने की चुनौतियों को ध्यान देने में सहयोग करना चाहिए।

डेन्डरफ





सदिर्यों में डैंड्रफ करें दूर

22 Nov 2009, 0030 hrs IST,हेलो दिल्ली

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सर्दियां आने के साथ ही बालों की सेहत खराब होने लगती है। ऐसे में बाल रूखे, बेजान और डैंड्रफ भरे हो जाते

हैं और इन वजहों से बालों की हालत और खराब होती है। दरअसल, सर्दियों का मौसम बालों की हालत और खराब कर देती है। ऐसा आपके लिए परेशानी तो खड़ा करता ही है, आपकी पर्सनैलिटी तक को खराब करता है। जिस तरह सर्दियों में त्वचा को एक्स्ट्रा केयर चाहिए होती है, उसी तरह बालों का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए।





सर्दियों में क्यों बढ़ती है डैंड्रफ



ऐसा माना जाता है कि ड्राई स्काल्प में डैंड्रफ बढ़ता है और इसलिए रोजाना बाल नहीं धोने चाहिए जबकि यह सोचना सही नहीं है। दरअसल, डैंड्रफ स्काल्प में मौजूद माइक्रोब्स की वजह होने वाली इंफेक्शन का नतीजा है और यह आमतौर पर ऑयली स्काल्प में होता है। अगर डैंड्रफ का इलाज न किया जाए, तो इससे बाल भी झड़ने लगते हैं।



अधिकतर लोग मानते हैं कि यीस्ट फंगस (पिटायरोस्पोरम ओवेल) की जरूरत से ज्यादा ग्रोथ की वजह से ही डैंड्रफ होता है। सूरज की यूवीए किरणें इस फंगस को खत्म करती हैं, लेकिन सर्दियों में धूप न होने की वजह से इसकी ग्रोथ बढ़ने लगती है। पिटायरोस्पोरम ओवेल की नॉर्मल लिमिट 46 पर्सेंट होती है और इसके 74 प्रतिशत तक बढ़ने के बाद ही डैंड्रफ बढ़ती है। फिर सर्दियों की रूखी हवाएं और नमी का कम होने भी डैंड्रफ को बढ़ाता है।



इनके अलावा, तनाव, हॉर्मोन लेवल का बिगड़ना, सही डाइट न लेना, प्रोटीन की कमी होना जैसे फैक्टर्स डैंड्रफ बढ़ाते हैं। शैंपू लगाने के बाद बालों को अच्छे से ना धोना, हेयर कलर, हेयर जेल, हेयर स्प्रे, ब्लो ड्रायर का ज्यादा यूज, स्ट्रेटनिंग आयरन जैसे फैक्टर्स भी ड्रैंड्रफ को बढ़ावा देते हैं।



कैसे रोकें सर्दियों में डैंड्रफ को




आयुर्वेद में डैंड्रफ को रोकने के तमाम तरीके हैं और आयुर्वेदिक तरीके से तैयार किए प्रॉडक्ट्स इस प्रॉब्लम को काफी हद तक दूर कर सकते हैं। फिर एक सही हेयर केयर रुटीन फॉलो करने से भी डैंड्रफ को दूर रखने के साथ हेल्दी भी रखा जा सकता है।



- बालों में रेग्युलर कंघी करें। ऐसा न करना भी बालों में डैंड्रफ को बढ़ाता है, क्योंकि कंघी न करने से स्काल्प से डेड स्किन हटती नहीं हैं। फिर इस वजह से बालों में ब्लड सप्लाई भी रुकती है।



- बालों को हफ्ते में कम से कम तीन बार धोएं। बालों को रेग्युलर धोने से फ्लेक्स नहीं बनते हैं।



- डैंड्रफ को दूर करने वाला शैंपू यूज करें। याद रखें कि शैंपू करने से बाल खराब नहीं होते हैं।



- बालों को धोने से लगभग एक घंटा पहले एंटी-डैंड्रफ ऑयल लगाएं। इससे बाल सॉफ्ट रहेंगे और इनकी चमक भी कम नहीं होगी।



- शैंपू लगाने के बाद बालों को अच्छी तरह साफ पानी से धोएं।



- बालों को जड़ों तक नरिशमेंट देने के लिए अच्छा मॉइश्चराइजिंग कंडिशनर लगाएं।



- बालों पर बहुत ज्यादा प्रॉडक्ट्स का यूज करने से बचें।



- बालों को हर छह से 8 हफ्ते में ट्रिम करवाएं। इससे बाल दो-मुंहें नहीं होंगे।



- अपनी डाइट को बैलेंस्ड रहें और इसमेंजिंक, बीटा-कैरोटीन, बी6, बी12, सेलेनियम जैसे विटामिन व मिनरल्स शामिल करें।



- बालों को तेज यूवी रेज से बचाएं। इसके लिए हैट या स्कार्फ पहनें।



- स्ट्रेटनिंग, पर्मिंग, कलरिंग जैसे हेयर ट्रीटमेंट्स से बचें, क्योंकि इनसे डैंड्रफ की प्रॉब्लम बढ़ती है।



- जरूरत से ज्यादा हीट भी बालों व स्काल्प के लिए अच्छी नहीं है।



- सब्जियों, फलों, होल ग्रेन्स वगैरह को अपनी डाइट में शामिल करना बालों के लिए अच्छा रहता है।



- दिन में खूब पानी पीएं। इससे बालों को पूरी नमी मिलेगी और बालों में चमक भी आएगी।



- अच्छी नींद भी बालों की सेहत के लिए अच्छी रहती है।



- रेग्युलर एक्सरसाइज, मेडिटेशन और योगा से रिलैक्स व तनाव रहित रहने से भी डैंड्रफ दूर होता है।



डैंड्रफ का अच्छा ट्रीटमेंट क्या है



डैंड्रफ को अच्छे ट्रीटमेंट से कंट्रोल किया जा सकता है। इसे दूर करने वाले अधिकतर ट्रीटमेंट्स पिटायरोस्पोरम ओवेल को दूर करते हैं। ऐसे शैंपू में इन चीजों में से एक या एक से ज्यादा का होना जरूरी है :



- जिंक पायरिथियोन : यीस्ट की ग्रोथ को रोकता है।



- सेलेनियम सल्फाइड : स्काल्प ग्लैंड्स से नेचरल ऑयल यानी सीबम को कंट्रोल करता है।



- कोल तार : नैचरल एंटी-फंगस एजेंट है। लेकिन बालों को कलर करवाया है, तो इसका ध्यान रखें, क्योंकि कोल तार के यूज से बालों में स्ट्रेन पड़ जाते हैं।



- कीटोजोनाजोल : यह स्काल्प को डेड सेल्स को दूर करता है।



इनके अलावा, इन नैचरल चीजों को भी चेक करें :



- टी ट्री ऑयल : नेचरल एंटी-डैंड्रफ एजेंट है।



- सेंटेला, ग्रेप सीड और होली बेसिल : असरदार एंटी-डैंड्रफ और एंटी-माइक्रोबियल ऐक्शन वाले हैं।



- इंडियन सार्सपेरिला, ऐलो और रोजमेरी : बालों व जड़ों को मॉइश्चर व नरिशमेंट देता है।



हालांकि डैंड्रफ की समस्या तेजी से बढ़ती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसे कंट्रोल या दूर नहीं किया जा सकता। आयुर्वेद में इसके लिए खास ट्रीटमेंट्स हैं। इसे दूर करने का सबसे आसान व सही तरीका हर्बल प्रॉडक्ट्स यूज करना है।


राशी फल

बताएं Twitter Delicious Facebook कल 28 नवंबर 2009 शनिवार का पंचांग संवत शुभकृत 2066, शके 1931 दक्षिणायन, दक्षिणगोल, हेमन्त ऋतु, मार्गशीर्षमास शुक्लपक्ष एकादशी 19 घंटे 16 मिनट तक, तत्पश्चात द्वादशी, रेवती नक्षत्र 29 घंटे 20 मिनट तक, तत्पश्चात अश्विनी नक्षत्र सिद्धि योग 13 घंटे 8 मिनट तक, तत्पश्चात व्यतिपात योग मीन में चंद्रमा 29 घंटे 20 मिनट तक तत्पश्चात मेष में।


पर्व एवं त्यौहार: मोक्षदा एकादशी

विशेष: पंचक 29 घंटे 20 मिनट तक

आज का राहुकाल:प्रात: 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे तक

ग्रह स्थिति आज:- 27 नवंबर 2009 शुक्रवार मार्गशीर्षमास शुक्लपक्ष दशमी का राशिफल मेष

व्यवसाय की व्यस्तता रहेगी, आर्थिक मामलों में जोखिम न उठायें। लोभ की स्थिति कष्टकारी होगी। आर्थिक मामलों में सचेत रहे। नेत्र व उदर विकार की संभावना, पारिवारिक समस्या कष्टकारी हो सकती है। वृष

विवाह समारोह में हिस्सेदारी लेंगे, व्यावसायिक व्यस्तता रहेगी। संबंधों में निकटता का अहसास करेगे, ससुराल पक्ष से सहयोग मिलेगा। यात्रा की संभावना है। पारिवारिक सहयोग मिलेगा, ईश्वर के प्रति आस्था रहेगी। मिथुन

अप्रिय समाचार मिल सकते है। वाहन या भवन की समस्या आ सकती है। त्वचा या उदर विकार की संभावना है। विरोधी सक्रिय रहेगे। व्यावसायिक मामलों में असावधानी मंहगी पड़ सकती है। कर्क

शिक्षा प्रतियोगिता में किया गया श्रम सार्थक होगा। व्यावसायिक योजना को बल मिलेगा। मैत्री संबंध प्रगाढ़ होंगे। बहुप्रतीक्षित कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव में वृद्धि होगी। यात्रा सुखद व लाभप्रद होगी। सिंह

पारिवारिक उत्सव में व्यस्त रहेगे। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होगी। निजी संबंध में प्रगाढ़ता आयेगी। रुपये पैसे में सावधानी अपेक्षित है। हानि होने की आशंका है। कन्या

पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होगी। शिक्षा प्रतियोगिता के क्षेत्र में चल रहे प्रयास फलीभूत होंगे। व्यावसायिक प्रयास परिवर्तन की दिशा में हितकर होगा। नया स्थान नए लोग आपके लिए लाभदायी होंगे। तुला

स्वकर्मी या किसी रिश्तेदार से पीड़ा मिल सकती है। आर्थिक मामलों में जोखिम न उठायें पारिवारिक तनाव भी रहेगा, फिर भी कोरा अहंकार अपने आपको धोखा देता रहेगा। आर्थिक प्रदर्शन हितकर नहीं है। वृश्चिक

सूर्य, बुध, शुक्र की युति आपमें नया उत्साह व जोश उत्पन्न करेगा। सामाजिक कार्यो में रुचि लेंगे। व्यावसायिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन, सम्मान में वृद्धि होगी। बौद्धिक प्रयास फलीभूत होंगे। यात्रा की स्थिति सुखद व लाभप्रद होगी। धनु

निजी संबंधों में निकटता आयेगी, पारिवारिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। लेकिन स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होगी। मकर

उपहार, सम्मान का योग है। व्यावसायिक योजना फलीभूत होगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। किसी कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव व वर्चस्व में वृद्धि होगी। जीविका के क्षेत्र में आशातीत सफलता मिलेगी, यात्रा भी संभव है। कुंभ

आर्थिक मामलों में प्रगति होगी। भौतिक सुख साधनों में व्यय अधिक होगा। सहयोगी जनों के साथ सुखद समय व्यतीत होगा। व्यावसायिक व्यस्तता के बावजूद मन प्रसन्न रहेगा। मीन

बहुप्रतीक्षित कार्य के सम्पन्न होने से आप में आत्मविश्वास की वृद्धि होगी। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। उपहार या सम्मान का लाभ मिलेगा। निजी संबंध प्रगाढ़ होगे। धन, सम्मान में वृद्धि होगी। किसी रिश्तेदार के कारण तनाव मिलेगा।

महंगाई

धनबाद, [बलदेव राज अरोड़ा]। चाय की प्याली के साथ ब्रेड ली, बटर लगाया और हो गया ब्रेकफास्ट। लेकिन स्लो-स्लो बटर की दर ने दौड़ लगाई, इसके पीछे-पीछे ब्रेड भी हो ली। चाय की चुसकी पर पहले से ही चीनी का पहरा था अब पत्ती भी गुस्ताखी पर उतर आई है। नाश्ते की प्लेट पर महंगाई की ऐसी मार पड़ी कि प्लेट छोटी हो गई। पहले पाच फिर छह अब सात अन्यास ही खरीददार के मुंह से अब ये निकल पड़ता है कि क्या महंगाई नाश्ते की प्लेट को भी निगल जाएगी।





जी हा! छोटी ब्रेड के दाम इस रफ्तार से बढ़े कि जोर का झटका धीरे से लगा बड़े साइज की ब्रेड 10 की जगह अब 14 रुपये ने ले ली है। नाश्ते में बिस्कुट लेने वालों को बरगलाने के लिए ब्राडेड कंपनियों ने तो ऐसा फारमूला अख्तियार किया कि साप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इन कंपनियों ने अपने उत्पाद बिस्कुट के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं की अलबत्ता उनके वजन में कटौती जरूर कर दी। खरीदने वाला यदि वजन पर ध्यान देता है तब महसूस करता है कि महंगाई का वार इस तरह के हथकंडे अपनाने के लिए इन कंपनियों को विवश कर रही है।




झरिया कोयलाचल में गुरुवार को आलम यह रहा कि पूरे बाजार में खोजने पर भी बटर नहीं मिला। इसकी भी कहानी कुछ ऐसी है पहले 18 रुपये फिर 19 रुपए और अब 22 रुपए में भी महाराज के लिए मारामारी हो रही है और महाराज गायब हैं। सुप्रभात की चाय की चुसकी का भी चाय पत्ती और दूध ने मजा किरकिरा कर दिया है। क्योंकि इनके भाव भी परवान चढ़ चुके हैं। 120 रुपये किलो बिकने वाली चायपत्ती इन दिनों 160-170 रुपए किलो पहुंच गई है। दूध को ही लीजिए कहीं 22 तो कहीं 25 रुपये किलो बिक रहा है जबकि 18 से 20 रुपए में यह उपलब्ध था। चीनी के दाम क्या बढ़े कि चाय कसैली लगने लगी है।



इन दिनों खुले बाजार में चीनी 37-38 रुपये किलो बिक रही है। महंगाई का आलम यह है कि नाश्ता की प्लेट से ब्रेड, बटर ही गायब हो गया है। नाश्ते में अंडे के शौकीन लोग दाम अंडे के दाम बढ़ते ही किनारा करने लगे।



आलम यह है कि खाने-पीने की चीजों में महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही है। आलू, प्याज, पोल्ट्री उत्पाद एवं दाल जैसी चीजों के दामों में और तेजी के चलते थोक मूल्यों पर आधारित खाद्य पदार्थो की महंगाई दर 14 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 1.03 फीसदी बढ़कर 15.58 प्रतिशत हो गई।

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

हाय रे महंगाई



महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष द्वारा लोकसभा में सरकार पर जबर्दस्त हमला बोलन


े के बाद सरकार को मानना पड़ा कि देश में महंगाई काफी बढ़ी है। लेकिन साथ ही इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डालते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि राज्यों के सहयोग के बिना महंगाई को नियंत्रित करना मुश्किल है। महंगाई पर हुई चर्चा में विपक्ष का आरोप था कि देश में आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं है मगर फिर भी सरकार का कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं है।



केंद्र ने राज्यों पर थोपी जिम्मेदारी: बहस में हस्तक्षेप करते हुए मुखर्जी ने कहा कि यह सच है कि आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़े हैं लेकिन सरकार ने इसका असर गरीबों पर नहीं पड़ने दिया। बीपीएल परिवारों को हर महीने 35 किलो गेहूं या चावल उपलब्ध करवाया जा रहा है। जिसमें गेहूं का दाम दो रुपये किलो और चावल का तीन रुपये किलो है। मुखर्जी ने कहा कि देश के संघीय ढांचे का मतलब केवल टैक्सों का बंटवारा करना ही नहीं है, जिम्मेदारी का बंटवारा भी है। राज्य सरकार को पीडीएस सिस्टम को कारगर बनाने और गरीबों को उचित दरों पर अनाज मुहैया करवाने की जिम्मेदारी उठानी होगी। मुखर्जी ने महंगाई बढ़ने के तीन कारण बताए। पहला अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में वृद्धि, दूसरा आर्थिक मंदी और तीसरा कम वर्षा।



चीनी पर हुए कड़वे सवाल: बहस की शुरुआत करते हुए जेडीयू के राजीव रंजन सिंह ललन ने कहा कि महंगाई सारी सीमाओं को पार कर गई है। उन्होंने महंगाई के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए कहा कि सरकार की चिंता सिर्फ जीडीपी है। ललन ने सरकार की एक्सपोर्ट पॉलिसी की आलोचना करते हुए कहा कि पहले चीनी और अन्य चीजों को एक्सपोर्ट किया गया और फिर कमी बताकर उन्हें ही इंपोर्ट किया गया। उन्होंने कहा कि चीनी इस समय 40 रुपये किलो बिक रही है, जबकि पिछले साल इसके दाम 18 रुपये किलो थे।



पार्टियों ने दागे सवाल: एसपी के मुलायम सिंह यादव ने कहा कि देश की एक चौथाई धन-संपत्ति पर सौ परिवारों ने कब्जा कर रखा है। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां ऐसी हैं कि गन्ना सस्ता है और चीनी महंगी। कथित अर्थशास्त्रियों ने देश को बर्बाद कर दिया। बीएसपी के दारा सिंह चौहान ने जमाखोरों पर नकेल कसने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जानबूझकर महंगाई बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी राज्यों सरकारों की है। बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि एनडीए के शासनकाल में जबर्दस्त सूखा पड़ा था, मगर महंगाई को नहीं बढ़ने दिया गया।

26/11

समूचा देश आज 26/11 की पहली बरसी मना रहा है। हर हिंदुस्तानी को हिला कर रख देने वाले इस खौफनाक मंजर को लेकर भारतभर में अनेक आयोजन हो रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है। जिस बहादुरी से हमारे सुरक्षा बलों ने आतंकियों का सामना किया, उसने पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को भी हमारी ताकत का अहसास करवा दिया होगा। हमले के बाद मुंबई भी बिना डरे-सहमे इस सदमे से लड़ी, उसके लिए मुंबईकरों की तारीफ होना ही चाहिए।







FILE...लेकिन इस पूरे हादसे के साथ और इसके बाद घटे कुछ वाकयों से उपजे सवाल अभी भी आक्रोश की आग को ठंडा नहीं होने दे रहे हैं। न तो सरकार की कथनी उसकी करनी से मेल खाती है और न ही जनभावनाओं का ज्वार उसे राजनीति से परे होकर देशहित में फैसले लेने के लिए विवश कर पाता है। हमले के बाद से घटी कुछ घटनाएँ तो यही बात चीख-चीख कर कहती हैं।



आरआर पाटिल को गृह मंत्री की कमान क्यों : मुंबई हमले के दौरान महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल ने अपने उद्गार कुछ इस तरह व्यक्त किए थे- ''आतंकवादी तो पाँच हजार लोगों को मारने की योजना बनाकर आए थे, हमने कितने कम लोगों को मरने दिया। इतने बड़े शहर में एकाध हादसा तो हो ही जाता है।''



महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल कह चुके हैं-''मैंने पाटिल से हमले वाली रात घर से बाहर निकलने को कहा था, लेकिन वे नहीं निकले।''



महाराष्ट्र में सरकार की साझेदार कांग्रेस इस बात का जवाब दे कि पाटिल की गृह मंत्री के पद पर दोबारा ताजपोशी क्या भारतीयों की भावना और उनकी सुरक्षा के साथ मजाक नहीं है? क्या एनसीपी में दूसरा कोई नेता नहीं है, जिसे यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। क्या ऐसे नाकारा नेताओं को सहना अब देश की मजबूरी बन गई है?



मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं : कितनी शर्मनाक और हास्यास्पद स्थिति है कि मुंबई हमले में मारे गए शहीदों और आम नागरिकों के परिजनों को अब तक मुआवजा ही नहीं मिला है। महाराष्ट्र के गृहमंत्री पाटिल साहब ने अभी इसके लिए और 15 दिन और माँगे हैं।



ज्ञात हो कि आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे को सालभर बीत जाने के बाद भी पेट्रोल पंप नहीं मिला। वे अगर पिछले दिनों सोनिया गाँधी से नहीं मिलतीं तो शायद मुरली देवड़ा आज (26/11) को पंप देने का वादा पता नहीं करते या नहीं।



अब तक जवानों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं : हमले को एक साल बीतने के बावजूद केंद्र सरकार पुलिस के जवानों को बुलेट प्रूफ जैकेट तक उपलब्ध नहीं करा पायी। शायद रक्षा खर्च के लिए आवंटित राशि में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है।



बंकर बने पीकदान : हमले के तत्काल बाद उठाए गए जिन ऐहतियाती कदमों के तहत मुंबई के प्रमुख इलाकों में निगरानी बंकर बनाए गए थे, उन्होंने आज पीकदान की शक्ल ले ली है। इसके आगे महाराष्ट्र सरकार की किसी लापरवाही का जिक्र करना ही बेकार है।



भारत में दोबारा 26/11 जैसा हमला न होने देने का दावा करने वाला केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय सुरक्षा पर भारी-भरकम खर्च और योजनाओं की फेहरिस्त जारी करता है तो दूसरी तरफ प्रशासन के स्तर पर जारी उपरोक्त काहिली सरकार के असल इरादों की पोल खोलती है।



अब जो दिखाई दे रहा है उसके लिए जिम्मेदार लोगों को 'सबक' सिखाएँ या सरकार के दावों पर आँख मूँदकर भरोसा करें। फैसला आपका...।
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मुंबई हमले के एक साल होने पर पूरे देश में रस्मी तौर पर सुरक्षा प्रबंध कड़े कर दिए गए हैं। हर जगह हथियारों से लैस सुरक्षाबलों और बेरिकेड्स को देख एक साल पुराने जख्म फिर से हरे हो रहे है। रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर आते-जाते मेटल डिटेक्टर की बीप के साथ ही सुरक्षाकर्मियों की आँखें हर यात्री को संदेह भरी निगाहों से देख रही है।




हवाई अड्डे को जाती सभी गाड़ियों को दो-तीन जगह चेक पॉइंट से गुजरना पड़ रहा है। सिनेमा घरों में स्लाइड शो के जरिए संदिग्ध वस्तुओं के बारे में चेतावनी दिखाई जा रही है। खुफिया एजेंसियाँ लगातार अलर्ट जारी कर रही है। सरकार ने आतंक की इस बरसी पर सुरक्षा के काफी कड़े इंतजाम किए हैं।



पर कुल मिला कर यह सारे इंतजाम न चाहते हुए भी बार-बार हमें आतंक भरे तीन दिनों की याद दिलाते हैं। मन में सवाल उठता है अगर इनमें से थोड़े भी इंतजाम एक साल पहले हुए होते तो क्या इतने मासूम लोगों की जान नहीं बच जाती? क्यों सरकार सिर्फ कुछ चुनिंदा दिनों पर ही सक्रिय होती है। क्यों नहीं ऐसी सुरक्षा हमेशा ही रखी जाती है।



कहते है सावधान रहना सुरक्षा की सबसे पहली जरूरत है, पर आम दिनों में न तो सावधानी दिखती है न ही सुरक्षा। सरकार जब भी सुरक्षा पुख्ता करने का दावा करती है यह जोड़ना नहीं भूलती कि हम हर किसी को सुरक्षा नहीं दे सकते या आतंकी हमलों से पूरी तरह नहीं बचा जा सकता।






PRबहुत से सुरक्षा विशेषज्ञ मानते है कि पिछले एक साल में कोई बड़ा हमला नहीं होना सजगता और सतर्कता की निशानी है पर आतंकी हमलों की सारी प्लानिंग बाहर के देशों में हो रही है उन्हें अमल में लाने के लिए स्थानीय स्लीपर सेल की मदद से अंजाम दिया जाता है तो ऐसे तत्वों की पहचान करने में कहाँ चूक हो रही है, क्या भरोसा कि लश्कर और अल-कायदा के लोग किसी अगले हमले की तैयारी में लगे हों और मौका पाते ही इसे अंजाम दे दें।




बार-बार संसाधनों का रोना रोते अधिकारी कोई ठोस एक्शन प्लान क्यों नहीं बनाते है, अगर सुरक्षाबलों में कार्यबल की कमी है तो इसमें इजाफा करना होगा। क्यों हम हर बार भूल जाते है कि भारत में लाखों पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार हैं उनमें से कितने ही लोग सुरक्षाबलों और पुलिस में नौकरी पा सकते हैं।



सिटीजन पुलिसिंग की तर्ज पर लोगों को साथ जोड़ने और जिम्मेदारी देने के सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। मुखबिर तंत्र को मजबूत करने की भी जरूरत है, मामूली से मामूली सूचनाओं का विश्लेषण कर उस पर समय पर कार्रवाई की जरूरत है।



सामाजिक तौर पर जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझना होगी, बड़ी हैरत की बात है कि 26/11 के बाद मोमबत्ती जलाने और हमले के जगहों पर मौन रख कड़ा विरोध जताने वाली मुंबईClick here to see more news from this city में इस साल हुए चुनाव में बीते कई सालों का सबसे कम वोटिंग टर्न-अराउंड दर्ज किया गया है।



हर भारतीय की सुरक्षा के लिए सरकार जिम्मेदार है और इसी तरह हर भारतीय नागरिक की भी सरकार और देश के प्रति जिम्मेदारी बनती है। जिस दिन दोनों को यह बात समझ में आ गई स्थिति बदलते देर नहीं लगेगी। सुरक्षा और सजगता के नाम पर सतही प्रदर्शन से आतंकवाद और हमलों को नहीं रोका जा सकता। इन्हें रोकने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत इरादों की दरकार है।




जब चंद मुट्ठी भर लोगों की एकता हम एक अरब लोगों के बिखराव और लापरवाही पर भारी पड़ जाती है तब हम बरसों के अलसाए जागते हैं। और फिर सो जाते हैं जब तक कि अगला धमाका हमारे कानों के पास ना हो जाए। आतंकवाद से ज्यादा यह अकर्मण्यता ही हमारी सुरक्षा का दुश्मन है, समय रहते इसे ही सुधारना होगा। ईमानदारी से सब प्रयास करें तो तस्वीर जरूर बदलेगी।
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महाभारत



जो यहाँ है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाएगा, जो यहाँ नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा'- महाभारत।






ND'महाभारत' को महाकाव्य रूप में लिखा गया भारत का ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य ग्रंथ है। इसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं, जो इलियड और ओडिसी से सात गुना ज्यादा माना जाता है। महाभारत का एक छोटा-सा हिस्सा मात्र है गीता। महाभारत में वेदों और अन्य हिन्दू ग्रंथों का सार निहित है। महाभारत को महर्षि वेद व्यासजी ने लिखा था।



ऐतिहासिक तथ्‍य :

विद्वानों का मानना है कि महाभारत में ‍वर्णित सूर्य और चंद्रग्रहण के अध्ययन से पता चलता है कि इसकी रचना 31वीं सदी ईसा पूर्व हुई थी। आमतौर पर इसका रचनाकाल 1400 ईसा पूर्व का माना जाता है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ।



एक अध्ययन अनुसार राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। शल्य जो महाभारत में कौरवों की तरफ से लड़ा था उसे रामायण में वर्णित लव और कुश के बाद की 50वीं पीढ़ी का माना जाता है। इसी आधार पर कुछ विद्वान महाभारत का समय रामायण से 1000 वर्ष बाद का मानते हैं।



ताजा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। इसके कुछ माह बाद ही महाभारत की रचना हुई मानी जाती है।



महाभारत का युद्ध :

महाभारत में चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। 100 कौरव और पाँच पांडव के बीच भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त लड़ाई आज के हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुई मानी गई है। इस युद्ध में पांडव विजयी हुए थे। इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा जाता है। धर्मयुद्ध अर्थात सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध।



एक मान्यता अनुसार अन्य भारतीय साहित्यों की तरह यह महाकाव्य भी पहले वाचिक परंपरा द्वारा हम तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँची है। बाद में छपाई की कला के विकसित होने से पहले ही इसके बहुत से अन्य भौगोलिक संस्करण भी हो गए हैं जिनमें बहुत-सी ऐसी घटनाएँ हैं जो मूल कथा में नहीं दिखतीं या फिर किसी अन्य रूप में दिखती हैं।



महाभारत में कुल उन्नीस खंड हैं जिसे पर्व कहा जाता है:-

1. आदिपर्व : परिचय, राजकुमारों का जन्म और लालन-पालन।

2. सभापर्व : दरबार की झलक, द्यूत क्रीड़ा और पांडवों का वनवास, मय दानव द्वार इंद्रप्रस्थ में भवन का निर्माण।

3. अरण्यकपर्व (अरण्यपर्व) - वनों में 12 वर्ष का जीवन।

4. विराटपर्व : राजा विराट के राज्य में अज्ञातवास।

5. उद्योगपर्व : युद्ध की तैयारी।

6. भीष्मपर्व - महाभारत युद्ध का पहला भाग, भीष्म कौरवों के सेनापति के रूप में (इसी पर्व में भगवद्‍गीता आती है)।

7. द्रोणपर्व : युद्ध जारी, द्रोण सेनापति।

8. कर्णपर्व : युद्ध जारी, कर्ण सेनापति।

9. शल्यपर्व : युद्ध का अंतिम भाग, शल्य सेनापति।

10. सौप्तिकपर्व : अश्वत्थामा और बचे हुए कौरवों द्वारा पांडव सेना का सोए हुए में वध।

11. स्त्रीपर्व : गान्धारी और अन्य स्त्रियों द्वारा मृत लोगों के लिए शोक।

12. शांतिपर्व : युधिष्ठिर का राज्याभिषेक और भीष्म के दिशा-निर्देश।

13. अनुशासनपर्व : भीष्म के अंतिम उपदेश।

14. अश्वमेधिकापर्व : युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध का आयोजन।

15. आश्रम्वासिकापर्व : धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का वन में आश्रम के लिए प्रस्थान।

16. मौसुलपर्व : यादवों की परस्पर लड़ाई।

17. महाप्रस्थानिकपर्व : युधिष्ठिर और उनके भाइयों की सद्‍गति का प्रथम भाग।

18. स्वर्गारोहणपर्व : पांडवों की स्वर्ग यात्रा।

19. हरिवंशपर्व इसके अलावा 16,375 श्लोकों का एक उपसंहार भी बाद में महाभारत में जोड़ा गया था जिसे हरिवंशपर्व कहा जाता है। इस अध्याय में खासकर भगवान श्रीकृष्ण के बारे में वर्णन है।



अन्य तथ्य :

गीता : श्रीकृष्ण द्वारा भीष्मपर्व में अर्जुन को दिया गया उपदेश।

कृष्णवार्ता : भगवान श्रीकृष्ण की हरिवंशपर्व में दी गई कहानी।

रामायण : राम-रामायण का अरण्यकपर्व में एक संक्षिप्त वर्णन।

विष्णुसहस्रनाम : शांतिपर्व में वर्णित विष्णु के 1000 नामों की महिमा।

प्रेमकथा : अरण्यकपर्व में नल-दमयंती की प्रेमकथा। ऋष्य ऋंग एक ऋषि की प्रेमकथा।

बुधवार, 18 नवंबर 2009

वास्तवमें आत्मा ही परमात्मा है



gita

भारतीय पुराणिक धर्म ग्रन्थों की शिक्षा का भारत में खून?


गीता के अनुयायी महात्मा गाँधी को सलाम