गुरुवार, 26 नवंबर 2009

26/11

समूचा देश आज 26/11 की पहली बरसी मना रहा है। हर हिंदुस्तानी को हिला कर रख देने वाले इस खौफनाक मंजर को लेकर भारतभर में अनेक आयोजन हो रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है। जिस बहादुरी से हमारे सुरक्षा बलों ने आतंकियों का सामना किया, उसने पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को भी हमारी ताकत का अहसास करवा दिया होगा। हमले के बाद मुंबई भी बिना डरे-सहमे इस सदमे से लड़ी, उसके लिए मुंबईकरों की तारीफ होना ही चाहिए।







FILE...लेकिन इस पूरे हादसे के साथ और इसके बाद घटे कुछ वाकयों से उपजे सवाल अभी भी आक्रोश की आग को ठंडा नहीं होने दे रहे हैं। न तो सरकार की कथनी उसकी करनी से मेल खाती है और न ही जनभावनाओं का ज्वार उसे राजनीति से परे होकर देशहित में फैसले लेने के लिए विवश कर पाता है। हमले के बाद से घटी कुछ घटनाएँ तो यही बात चीख-चीख कर कहती हैं।



आरआर पाटिल को गृह मंत्री की कमान क्यों : मुंबई हमले के दौरान महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल ने अपने उद्गार कुछ इस तरह व्यक्त किए थे- ''आतंकवादी तो पाँच हजार लोगों को मारने की योजना बनाकर आए थे, हमने कितने कम लोगों को मरने दिया। इतने बड़े शहर में एकाध हादसा तो हो ही जाता है।''



महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल कह चुके हैं-''मैंने पाटिल से हमले वाली रात घर से बाहर निकलने को कहा था, लेकिन वे नहीं निकले।''



महाराष्ट्र में सरकार की साझेदार कांग्रेस इस बात का जवाब दे कि पाटिल की गृह मंत्री के पद पर दोबारा ताजपोशी क्या भारतीयों की भावना और उनकी सुरक्षा के साथ मजाक नहीं है? क्या एनसीपी में दूसरा कोई नेता नहीं है, जिसे यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। क्या ऐसे नाकारा नेताओं को सहना अब देश की मजबूरी बन गई है?



मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं : कितनी शर्मनाक और हास्यास्पद स्थिति है कि मुंबई हमले में मारे गए शहीदों और आम नागरिकों के परिजनों को अब तक मुआवजा ही नहीं मिला है। महाराष्ट्र के गृहमंत्री पाटिल साहब ने अभी इसके लिए और 15 दिन और माँगे हैं।



ज्ञात हो कि आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे को सालभर बीत जाने के बाद भी पेट्रोल पंप नहीं मिला। वे अगर पिछले दिनों सोनिया गाँधी से नहीं मिलतीं तो शायद मुरली देवड़ा आज (26/11) को पंप देने का वादा पता नहीं करते या नहीं।



अब तक जवानों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं : हमले को एक साल बीतने के बावजूद केंद्र सरकार पुलिस के जवानों को बुलेट प्रूफ जैकेट तक उपलब्ध नहीं करा पायी। शायद रक्षा खर्च के लिए आवंटित राशि में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है।



बंकर बने पीकदान : हमले के तत्काल बाद उठाए गए जिन ऐहतियाती कदमों के तहत मुंबई के प्रमुख इलाकों में निगरानी बंकर बनाए गए थे, उन्होंने आज पीकदान की शक्ल ले ली है। इसके आगे महाराष्ट्र सरकार की किसी लापरवाही का जिक्र करना ही बेकार है।



भारत में दोबारा 26/11 जैसा हमला न होने देने का दावा करने वाला केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय सुरक्षा पर भारी-भरकम खर्च और योजनाओं की फेहरिस्त जारी करता है तो दूसरी तरफ प्रशासन के स्तर पर जारी उपरोक्त काहिली सरकार के असल इरादों की पोल खोलती है।



अब जो दिखाई दे रहा है उसके लिए जिम्मेदार लोगों को 'सबक' सिखाएँ या सरकार के दावों पर आँख मूँदकर भरोसा करें। फैसला आपका...।
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मुंबई हमले के एक साल होने पर पूरे देश में रस्मी तौर पर सुरक्षा प्रबंध कड़े कर दिए गए हैं। हर जगह हथियारों से लैस सुरक्षाबलों और बेरिकेड्स को देख एक साल पुराने जख्म फिर से हरे हो रहे है। रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर आते-जाते मेटल डिटेक्टर की बीप के साथ ही सुरक्षाकर्मियों की आँखें हर यात्री को संदेह भरी निगाहों से देख रही है।




हवाई अड्डे को जाती सभी गाड़ियों को दो-तीन जगह चेक पॉइंट से गुजरना पड़ रहा है। सिनेमा घरों में स्लाइड शो के जरिए संदिग्ध वस्तुओं के बारे में चेतावनी दिखाई जा रही है। खुफिया एजेंसियाँ लगातार अलर्ट जारी कर रही है। सरकार ने आतंक की इस बरसी पर सुरक्षा के काफी कड़े इंतजाम किए हैं।



पर कुल मिला कर यह सारे इंतजाम न चाहते हुए भी बार-बार हमें आतंक भरे तीन दिनों की याद दिलाते हैं। मन में सवाल उठता है अगर इनमें से थोड़े भी इंतजाम एक साल पहले हुए होते तो क्या इतने मासूम लोगों की जान नहीं बच जाती? क्यों सरकार सिर्फ कुछ चुनिंदा दिनों पर ही सक्रिय होती है। क्यों नहीं ऐसी सुरक्षा हमेशा ही रखी जाती है।



कहते है सावधान रहना सुरक्षा की सबसे पहली जरूरत है, पर आम दिनों में न तो सावधानी दिखती है न ही सुरक्षा। सरकार जब भी सुरक्षा पुख्ता करने का दावा करती है यह जोड़ना नहीं भूलती कि हम हर किसी को सुरक्षा नहीं दे सकते या आतंकी हमलों से पूरी तरह नहीं बचा जा सकता।






PRबहुत से सुरक्षा विशेषज्ञ मानते है कि पिछले एक साल में कोई बड़ा हमला नहीं होना सजगता और सतर्कता की निशानी है पर आतंकी हमलों की सारी प्लानिंग बाहर के देशों में हो रही है उन्हें अमल में लाने के लिए स्थानीय स्लीपर सेल की मदद से अंजाम दिया जाता है तो ऐसे तत्वों की पहचान करने में कहाँ चूक हो रही है, क्या भरोसा कि लश्कर और अल-कायदा के लोग किसी अगले हमले की तैयारी में लगे हों और मौका पाते ही इसे अंजाम दे दें।




बार-बार संसाधनों का रोना रोते अधिकारी कोई ठोस एक्शन प्लान क्यों नहीं बनाते है, अगर सुरक्षाबलों में कार्यबल की कमी है तो इसमें इजाफा करना होगा। क्यों हम हर बार भूल जाते है कि भारत में लाखों पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार हैं उनमें से कितने ही लोग सुरक्षाबलों और पुलिस में नौकरी पा सकते हैं।



सिटीजन पुलिसिंग की तर्ज पर लोगों को साथ जोड़ने और जिम्मेदारी देने के सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। मुखबिर तंत्र को मजबूत करने की भी जरूरत है, मामूली से मामूली सूचनाओं का विश्लेषण कर उस पर समय पर कार्रवाई की जरूरत है।



सामाजिक तौर पर जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझना होगी, बड़ी हैरत की बात है कि 26/11 के बाद मोमबत्ती जलाने और हमले के जगहों पर मौन रख कड़ा विरोध जताने वाली मुंबईClick here to see more news from this city में इस साल हुए चुनाव में बीते कई सालों का सबसे कम वोटिंग टर्न-अराउंड दर्ज किया गया है।



हर भारतीय की सुरक्षा के लिए सरकार जिम्मेदार है और इसी तरह हर भारतीय नागरिक की भी सरकार और देश के प्रति जिम्मेदारी बनती है। जिस दिन दोनों को यह बात समझ में आ गई स्थिति बदलते देर नहीं लगेगी। सुरक्षा और सजगता के नाम पर सतही प्रदर्शन से आतंकवाद और हमलों को नहीं रोका जा सकता। इन्हें रोकने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत इरादों की दरकार है।




जब चंद मुट्ठी भर लोगों की एकता हम एक अरब लोगों के बिखराव और लापरवाही पर भारी पड़ जाती है तब हम बरसों के अलसाए जागते हैं। और फिर सो जाते हैं जब तक कि अगला धमाका हमारे कानों के पास ना हो जाए। आतंकवाद से ज्यादा यह अकर्मण्यता ही हमारी सुरक्षा का दुश्मन है, समय रहते इसे ही सुधारना होगा। ईमानदारी से सब प्रयास करें तो तस्वीर जरूर बदलेगी।
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