सोमवार, १५ फरवरी २०१०
धर्म और मोक्ष धर्म
धर्म और मोक्ष धर्म उस बहुदलीय पुष्प की तरह है, जो अर्थ और काम रूपी पंखुडि़यों को सुनियोजित करके मोक्ष-सौरभ बिखेरता है। धर्म इहलोक का नियमन करके परलोक के साथ मन को जोड़ता है। प्रवृत्तिपरक और निवृत्तिपरक विचारों का एक समन्वित प्रयास है धर्म। भारतीय चिंतन परंपरा में धर्म, अर्थ और काम को त्रिवर्ग की संज्ञा दी गई है। त्रिवर्ग इहलोक का पुरुषार्थ है। मनुष्य में जीवन जीने की कला यहीं से आती है। हमारे यहां धर्म को ज्ञान का पर्याय कहा गया है। इस दृष्टि से धर्म मनुष्य का विशिष्ट गुण है। महाभारत की स्पष्ट घोषणा है कि बुद्धिमान लोग त्रिवर्ग को पाने की चेष्टा करते हैं। यदि उनमें से एक ही सुलभ हो तो वे धर्म को ही चुनते हैं, क्योंकि धर्म के बिना अर्थ और काम कतई पालनीय नहीं है: धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते। भारतीय आचारमीमांसा की मान्यता है कि धर्म जीवन का प्रस्थान बिंदु है और मोक्ष गंतव्य बिंदु। सर्वप्रथम शांत वातावरण में सुधी गुरु की कृपा-छाया के तले धर्मशास्त्र का सजग अध्ययन होना चाहिए। धार्मिक मूल्यों को आत्मसात् करने के उपरांत गृहस्थाश्रम में प्रवेश की अनुमति होनी चाहिए। जिसे धर्म का बोध नहीं होगा वह कदाचार के सहारे विपुल धन का संग्रह करेगा और तुच्छ कामनाओं की तृप्ति में धन का अपव्यय करेगा। हमारा धर्मशास्त्र धर्म के प्रखर प्रकाश में धनार्जन की अनुमति देता है और लोकसंग्रह के भाव से जीवन में धन के सदुपयोग की शिक्षा देता है। धर्म उस फिटकरी के सदृश है,जो भोगवाद में निहित वासना को साफ कर देता है और कर्त्तव्य कर्म में मनुष्य को नियोजित करता है। इसी तरह वैराग्यवाद में अकर्मता से उसे पृथक कर निष्कामता की ओर प्रवृत्त करता है। यही कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने की कला है, जिसे भगवद्गीता में निष्काम कर्मयोग कहा गया है। भोगवाद का कर्म और वैराग्यवाद की निष्कामता के योग से निष्काम कर्म की धारणा विकसित होती है, जो साधक को मोक्ष की यात्रा करा देती है। संसार मोक्ष के मार्ग में बाधक न होकर साधक है। केवल धर्म के स्निग्ध प्रकाश में संसार के साथ जीवन जीने की कला विकसित कर ली जाए। अनासक्त भाव में आते ही साधक संसार के झंझावात में बुझे हुए दीपक की तरह शांत खड़ा रहता है। यही जीवन्मुक्ति है-निर्वाण है।
डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…- गूगल ने आपके पत्रा को वयस्क बता कर आगंतुकों को सीधे आने से रोक रखा है क्या बात है आप गूगल से इस बारे में पत्रव्यवहार करिए कि क्या धार्मिक बातें लिखना गलत है? सादरप्रभु की यही इछा थी |उन का कथन हे कि तुझे यह गीता रूप रहस्य कभी भी तप रहित ,भगती रहित और न सुनने कि इछा वालों तथा मुझ में दोष दृष्टि रखने वालों से तो इसे कभी भी नही कहना चाहिए (देखें अध्याये १८ का ६७ वां श्लोक ) अब आप ही बताएं मुझे क्या करना चाहिए था ?मेने अपने विवेक से ऐसा किया कि प्रभु आप कि इछा से जो क्लिक करे गा वही पडे गा |आप के पास कोई और विकल्प हो तो सुझायं -----धन्यवाद ------गीता
 
नया साल शानदार होगा.
 मलेशिया की एक अदालत ने सरकार के आदेश को उलटते हुए फ़ैसला सुनाया है कि ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग किया जा सकता है.
सरकार की दलील थी कि ग़ैर मुसलमान यदि अल्लाह शब्द का प्रयोग करेंगे तो देश में अशांति फैल सकती है.
जब  कि अल्लाह शब्द सिर्फ़ इस्लाम से ही संबद्ध नहीं है.खुदा आल्हा ईश्वर सभी का साझा और आखरी पड़ाव है. अदालत केएक फ़ैसले के बाद अब पूरे मलेशिया में ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग संभव हो सकेगा.
मामले की सुनवाई के दौरान कैथोलिक ईसाइयों के अख़बार हेराल्ड ने दलील दी थी कि चर्च में अल्लाह शब्द का प्रयोग दशकों से हो रहा है. हेराल्ड ने सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ 2007 में अदालत में अपील दायर की थी.
संदेह
कई मुस्लिम संगठनों ने अल्लाह शब्द के प्रयोग के बारे में कैथोलिक चर्च के आग्रह पर संदेह व्यक्त किया था.इनका मानना है कि अल्लाह शब्द के प्रयोग के आग्रह से चर्च की मुसलमानों को धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाने की मंशा साफ़ हो जाती है.
उल्लेखनीय है कि मलेशिया में धर्म परिवर्तन अवैध है.ताज़ा विवाद से मलेशिया में समुदायों के बीच तनाव बढ़ सकता है.
हेराल्ड अख़बार ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि मलेशिया के साढ़े आठ लाख कैथोलिकों के लिए नया साल शानदार होगा.
मलेशिया की आधी से ज़्यादा आबादी मलय मुसलमानों की है. बाक़ी आबादी में चीनी और भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है जो कि मुख्यत: ईसाई, बौद्ध और हिंदू धर्मों को मानने वाले हैं.
मंगलवार, ९ फरवरी २०१०
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 - 'है' को हो जाने देना मोक्ष है
 - 'मैं' केवल प्रेम से छूटता है
 - प्रभु को अपने भीतर अनुभव करो
 - जीवन एक कहानी है!!
 - जो केवल 'है'
 - स्वाधार चैतन्य ही समाधि है
 - दर्पण नहीं, स्वयं को बदलो
 - किसी क्षण केवल जीकर देखो ! अपने लिए जिए तो क्या जिए
 - स्वयं का साक्षात करो स्वयम को एक धर्म जन्मराशी देश मिला और उस धर्म के भगवान मिले ओशो मेरा बनाया हुआ हें जो सनातन नही है |
 - कौन हो तुम!!! ब्रह्मिण वैश्य क्षत्रिय या शुद्र जहाँ मेरा जन्म हुआ |
 - परिपूर्ण
 - जीवन-अस्तित्व असीम है!!! मुझे मन का राजा बनना हें मनका गुलाम नही
 - प्रत्येक मुक्त है मुक्त कोई नही सभी ओशो की चिकनी चुपड़ी रूपी माया जाल में फंसे हैं
 - सब विलीन हो जाने दो सब विलीन होते ही प्रलय आजाती है
 - मनुष्य का प्रौढ़ होना! मुर्खता है
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शुक्रवार, २७ नवम्बर २००९
ग्रहण
 खण्डग्रास चंद्रग्रहण 31 दिसंबर को 2009 के अंतिम दिन भी ग्रहण 
NDहमारे ब्रह्मांड में कुछ ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं, जो हमारे बीच कौतूहल का विषय एवं हमारे जीवन में कुछ न कुछ उथल-पुथल कर जाती हैं। वहीं वर्ष 2009 में इस बार 5 ग्रहण पड़े, जिनमें से सबसे बड़ा ग्रहण 22 जुलाई को पड़ा, जिस पर कई शोध भी हुए। जानकारी हो कि इस वर्ष के जाते-जाते भी 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ रहा है। कुल मिलाकर इस वर्ष सबसे अधिक ग्रहण पड़े।
जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य डॉ. एच.सी. जैन ने बताया कि 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा, जो वर्ष का अंतिम ग्रहण होगा। यह ग्रहण संपूर्ण भारत में दिखाई देगा। इसका सूतक 30 दिसंबर को दोपहर 3.22 बजे से पड़ेगा। यह खण्डग्रास चंद्रग्रहण रात्रि 12.21 से 1.24 बजे तक रहेगा। उन्होंने बताया कि इस ग्रहण से सोने-चाँदी, पीली वस्तुओं, गेहूँ, सूत, रुई, वस्त्र, तेल, गुड़, शक्कर, लोहे आदि में तेजी आएगी। साथ ही वर्ष का अंतिम ग्रहण होने के कारण आगामी वर्ष मध्यम रहेगा।
वर्ष 2009 में पड़े पाँच ग्रहण
- 26 जनवरी को कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण पड़ा। यह ग्रहण पूर्वी-दक्षिणी भारत, उत्तरी-पूर्वी भारत, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र आदि में दिखाई नहीं दिया।
- 9 फरवरी को मंद चंद्रग्रहण पड़ा। इसे उपछाई ग्रहण भी कहा गया। इसका सूतक भारत में मान्य नहीं था।
- 22 जुलाई को खण्डग्रास सूर्यग्रहण पड़ा। जो पूरे भारत में दिखाई दिया। यह ग्रहण वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय रहा और इस पर कई शोध हुए। इसके कारण दिन में रात्रि जैसा आभास हुआ एवं इसका दुष्प्रभाव पूरे भारत में देखने को मिला।
- 6 अगस्त को मंद चंद्रग्रहण पड़ा। यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं दिया।
- 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा। यह साल का अंतिम ग्रहण होगा। यह संपूर्ण भारत में दिखाई देगा।
NDवर्ष 2010 में पड़ने वाले ग्रहण
* 15 जनवरी- कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण
* 26 जून- खण्डग्रास चंद्रग्रहण
* 11 जुलाई- खण्डग्रास सूर्यग्रहण
* 21 दिसंबर- खण्डग्रास चंद्रग्रहण
NDहमारे ब्रह्मांड में कुछ ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं, जो हमारे बीच कौतूहल का विषय एवं हमारे जीवन में कुछ न कुछ उथल-पुथल कर जाती हैं। वहीं वर्ष 2009 में इस बार 5 ग्रहण पड़े, जिनमें से सबसे बड़ा ग्रहण 22 जुलाई को पड़ा, जिस पर कई शोध भी हुए। जानकारी हो कि इस वर्ष के जाते-जाते भी 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ रहा है। कुल मिलाकर इस वर्ष सबसे अधिक ग्रहण पड़े।
जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य डॉ. एच.सी. जैन ने बताया कि 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा, जो वर्ष का अंतिम ग्रहण होगा। यह ग्रहण संपूर्ण भारत में दिखाई देगा। इसका सूतक 30 दिसंबर को दोपहर 3.22 बजे से पड़ेगा। यह खण्डग्रास चंद्रग्रहण रात्रि 12.21 से 1.24 बजे तक रहेगा। उन्होंने बताया कि इस ग्रहण से सोने-चाँदी, पीली वस्तुओं, गेहूँ, सूत, रुई, वस्त्र, तेल, गुड़, शक्कर, लोहे आदि में तेजी आएगी। साथ ही वर्ष का अंतिम ग्रहण होने के कारण आगामी वर्ष मध्यम रहेगा।
वर्ष 2009 में पड़े पाँच ग्रहण
- 26 जनवरी को कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण पड़ा। यह ग्रहण पूर्वी-दक्षिणी भारत, उत्तरी-पूर्वी भारत, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र आदि में दिखाई नहीं दिया।
- 9 फरवरी को मंद चंद्रग्रहण पड़ा। इसे उपछाई ग्रहण भी कहा गया। इसका सूतक भारत में मान्य नहीं था।
- 22 जुलाई को खण्डग्रास सूर्यग्रहण पड़ा। जो पूरे भारत में दिखाई दिया। यह ग्रहण वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय रहा और इस पर कई शोध हुए। इसके कारण दिन में रात्रि जैसा आभास हुआ एवं इसका दुष्प्रभाव पूरे भारत में देखने को मिला।
- 6 अगस्त को मंद चंद्रग्रहण पड़ा। यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं दिया।
- 31 दिसंबर को खण्डग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा। यह साल का अंतिम ग्रहण होगा। यह संपूर्ण भारत में दिखाई देगा।
NDवर्ष 2010 में पड़ने वाले ग्रहण
* 15 जनवरी- कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण
* 26 जून- खण्डग्रास चंद्रग्रहण
* 11 जुलाई- खण्डग्रास सूर्यग्रहण
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गुरुवार, २९ अक्तूबर २००९
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- gita mhabhart
 - जन्म लिया भारत में भारत ही है घर मेरा भारत का खाना भारत का पानी पीना भारत में जीना भारत में मरजाना भारत भूमि देवताओं की उन्ही का गुण-गान करना जो हैं पाखंडी दम्भी उन का त्रिस्कार करना सनातन धर्म का प्रचार हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाई, इन चारों को मेरा प्रणाम जो हें विरोधी इनके उनको घुसे-लात
 






























 
 
 
 
 
 
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