शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

मूर्तिपूजा

मूर्तिपूजा

ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं। हिन्दु धर्म मे किसी भी वस्तु की पुजा की जा सकती है।हिन्दू लोग प्राण प्रतिष्ट मूर्तियों क़ी पूजा करते हैं .किन्तु जड़ पदार्थों क़ी भी पूजा करते हैं .
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार पूजा क़ी अलग अलग प्धतियां वर्णित हैं .मानसिक पूजा .का भी विधान है .जिसमे मन इतना रम जाता है क़ि उठते -बैठते -सोते जागते ,खाते-पीते,आँखे खोलते -मूंदते.उस ईश्वर की मूर्ति की क्षवी मस्त्शिक में घुमा करती है .मूर्ति पूजा इस लिए भी आवश्यक हो जाती हे कि मानसिक पूजा को सुद्रिड (मजबूत )किया जासके 
जेसे >यदि किसी व्यक्ति से कहा जावे बॉम्बे तो उसी समय बॉम्बे की क्षवी दिमाग में घूम जाती है .ठीक इसी प्रकार यदि प्रारम्भ में मूर्ति पूजा की जावे तो उस मूर्ति की  क्षवी दिमाग में उकर आती है .अतः मूर्ति पूजा का विधान होगया .इतना ही नही लेला मजनू की पूजा को मुला जी की पूजा से बेहतर इसी लिए माना गया कि उस के दिमाग में लैला के अतिरिक्त और कुछ था ही नहीं .हिन्दू सनातन धर्म में इसलिए भी मूर्ति पूजा को महत्व दिया गया है .वह भी देव स्थानों ,तीर्थ स्थानों ,मन्दिरों में .सनातन धर्म तो मन को मन्दिर ही मानता है जहां कोई जीवित मूर्ति .जड़ मूर्ति ना हो उसे पूजने का विधान नही है .ऐसे समय-परिस्थिति में काल्पनिक पूजा का विधान होता है

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