रविवार, 7 फ़रवरी 2010

श्रीकृष्ण के कंठ से उद्भूत माता सरस्वती

भगवती सरस्वती विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपति खंड के अनुसार, सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्तिने स्वयं को पांच भागों में विभक्त कर लिया।
भगवान श्रीकृष्ण के अंगों से वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में अवतरित हुई। सरस्वती उनके कंठ से निकली हैं। माघ शुक्ल पंचमी के दिन मां सरस्वती का आविर्भाव हुआ था। इस दिन को वसंत पंचमी भी कहते हैं। [देवों की प्रतिनिधि :]शारदा, त्रयीमूर्ति,वाणी, वाग्देवी,ब्राह्मी और भारती आदि नामों से भी सरस्वती को जाना जाता है। शास्त्रों में इनका मूल नाम श्री और श्री पंचमी है। श्वेत हंस, वीणा, अक्षमालिकाऔर पुस्तक इनके प्रतीक हैं। मां सरस्वती की आराधना करने के लिए श्लोक है-
सरस्वती शुक्ल वर्णासस्मितांसुमनोहराम।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।
वह्निशुद्धांशुकाधानांवीणा पुस्तक धारिणीम्।
रत्नसारेन्द्रनिर्माण नव भूषण भूषिताम।
सुपूजितांसुरगणैब्रह्म विष्णु शिवादिभि:।
वन्दे भक्त्यावन्दितांचमुनीन्द्रमनुमानवै:।
ऋग्वेद के अनुसार, सौम्य गुणों वाली यह देवी सभी देवताओं की रक्षा करती हैं। ये ब्रह्मस्वरूपाकामधेनु और समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण इनकी पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं। जैसे-श्वेत चंदन, पुष्प, परिधान, दही-मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, अदरक, श्वेत धान, अक्षत, शुक्ल मोदक, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल,बदरीफलआदि। [व्यक्तिगत रूप से करें पूजा :]शास्त्रों में वाग्देवीकी आराधना व्यक्तिगत रूप से करने का विधान है। सरस्वती रहस्योपनिषद,प्रपंचसारऔर शारदा तिलक ग्रंथों में इनका दिव्य वर्णन है। ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की अर्चना कवि कालिदासने वाक् और अर्थ को समाहित करते हुए की है-वागर्थाविव सम्पृक्तौवागर्थप्रतिप्रत्तये।जगत: पितरौवन्दे पार्वती परमेश्वरौ।तुलसीदास ने सबका मंगल करने वाली देवी को वाणी कहा है। वे देवी गंगा और सरस्वती को एक समान मानते हैं-पुनि बंदउंसारदसुर सरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।भज्जनपान पाप हर एका। कहत सुनतएक हर अविवेका।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, घर-परिवार और समाज व्यक्ति का साथ छोड देता है, लेकिन सरस्वती कभी साथ नहीं छोडतीं। सरस्वती का वाहन हंस निर्मल विवेक और नीर-क्षीर की पहचान करने का प्रतीक है। सरस्वती विनय प्रदान करती है। देवी सरस्वती की प्रसिद्ध द्वादश नामावली का पाठ करने पर भगवती प्रसन्न होती हैं-प्रथमं भारती नाम द्वितीयंचसरस्वती। तृतीयंशारदा देवी चतुर्थहंस वाहिनी।। पञ्चमंजगतीख्याताषष्ठंवागीश्वरीतथा सप्तमंकुमुदीप्रोक्ताअष्टमेंब्रह्मचारिणी। नवमंबुद्धिदात्रीचदशमंवरदायिनी।एकादशंचन्द्रकान्ति द्वादशंभुवनेश्वरी।
विश्वविजय सरस्वती कवच की आराधना से देवी सभी अभिलाषा पूर्ण करती हैं। कहते हैं कि व्यास, देवल, भरद्वाज, जैगीषव्यऋषियों ने इससे ही सिद्धि पाई।
स्तुति और वंदना :लेखनी और ग्रंथ में सरस्वती का निवास होता है। इनकी स्तुति और ध्यान करने के लिए श्लोक विख्यात हैं-या कुन्देन्दुतुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेत पद्मासना।या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृत्तिभिर्देवै:सदा वन्दिता सा मां पातुसरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यांजगदव्यापिनी।वीणापुस्तकधारिणीमभयदांजाड्यान्धकारापहाम्।हस्ते स्फटिक मालिकांविदधतींपद्मासनेसंस्थितांवन्दे तांपरमेश्वरी भगवतींबुद्धिप्रदांशारदाम।।
श्री सरस्वत्यैस्वाहा मंत्र से पूजन सामग्री समर्पित करते हुए देवी की आरती के साथ स्तुति की जाती है। देवी भागवत, ब्रह्मवैवर्तपुराण, दुर्गासप्तशती,संवत्सर प्रदीप में सरस्वती की पूजन विधियां हैं। वर्ण, पाद, प्रत्यय, रस, अर्थ, छंद, लय, ध्वनि का उद्गम सरस्वती से हुआ है। तीर्थराज प्रयाग में सरस्वती की ख्याति अनुपम है।

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