सोमवार, 15 मार्च 2010

धर्म के नाम पर अत्याचार

धर्म के नाम पर अत्याचार


 
2009 में धर्म का नए तरीके से दोहन किया गया एक और जहाँ उसे बाजारवाद के चलते बेचा गया, वहीं उसके माध्यम से आतंक और धर्मांतरण के नए-नए रूप विकसित किए गए। राजनीतिज्ञ, कट्टरपंथी और तथाकथित धार्मिक लोग अच्छे शब्दों में गंदा खेल खेलते रहे। अब राजनीति और आतंक का धर्म से गहरा ताल्लुक हो चला है।

यह कहना कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, अब हास्यास्पद ही लगता है। विभिन्नता में भी एकता है यह नारा भी अब चुभने लगा है। भारत में कोई भी सरकार रही हो, उसने भारत की समस्याओं के हल पर गंभीरता से विचार और कार्यवाही कभी नहीं की। गैर-जिम्मेदार राजनीति के चलते हर वर्ष सम्याएँ बढ़ती गई।

धर्म को लेकर कट्टरता तो 2008 में ज्यादा देखने को मिली, लेकिन 2009 में धार्मिक कट्टरता का नया रूप देखने को मिला। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जहाँ हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख लड़कियों से जबरन विवाह करने के मामले प्रकाश में आए, वहीं भारतीय राज्य केरल के 'लव जेहाद' की गूंज भारतीय संसद में भी सुनाई दी। इस्लामिक कट्टरता का सिर्फ यही भयानक रूप देखने को नहीं मिला, खुद मुसलमानों पर भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के नाम पर अत्याचार किए गए।

पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। राख के नीचे आग अभी भी सुलग रही है, ऐसे में 7 दिसंबर 2009 में दिव्यज्योति संगठन के आशुतोष महाराज के सत्संग को लेकर लुधियाना को सिख कट्टरपंथियों की तलवारों ने लहुलुहान कर दिया। सिखों का आरोप है कि आशुतोष महाराज सिख गुरुओं के खिलाफ गलत प्रचार कर रहे हैं, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि वे रामायण और गुरुग्रंथ साहिब की समानता की बात करते हैं। लुधियाना की हिंसा के खिलाफ दमदमी टक्साल और संत समाज ने भी पंजाब बंद का ऐलान किया था।

सिख समाज भी आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को हरियाणा की सरकार और सिखों ने कहा है कि हमें अब हरियाणा की अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चाहिए। सितंबर में हरियाणा के लिए अलग एसजीपीसी की माँग कर रहे सिख नेताओं ने जब कुरुक्षेत्र के प्रतिष्ठित छठी पातशाही गुरुद्वारा की जिम्मेदारी संभाल ली तो इस पर शीर्ष निकाय एसजीपीसी ने इसका कड़ा विरोध किया। बस इसी बात को लेकर पंजाब में हिंसक झड़पे होती रही। यह मामला चल ही रहा था कि राजस्थान के सिखों ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधिन रहना अस्वीकार कर दिया है।

एक दूसरे मामले की बात करें मालेगाँव विस्फोट का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि अक्टूबर माह में दीपावली उत्सव की पूर्व संध्या पर गोवा के मडगाँव शहर में हुए विस्फोट का आरोप हिंदू दक्षिण पंथी संगठन सनातन संस्था पर मड़ा गया। सनातन संस्था ने इस विस्फोट की घटना से खुद को अलग करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया, लेकिन पुलिस का कहना है कि सनातन संस्था की गतिविधियों के केंद्र रामनाथी गाँव स्थित आश्रम से कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिली है।

अब हम बात करते हैं इस्लामिक कट्टरता की, मई माह में तालिबानी आतंकवादियों के खिलाफ जारी आक्रामक अभियान के कारण अफगानिस्तान और स्वात घाटी से बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार पाकिस्तान के पंजाब के सरकारी शिविरों में ठहरे थे, लेकिन अब वे कहाँ हैं ये किसी को पता नहीं। एक प्रतिनिधि मंडल अनुसार उक्त शिविरों में लगभग 3100 प्रवासी परिवार थे, जिनमें से 468 सिख परिवार थे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वर्षों से जारी इस्लामिक हिंसा और अत्याचार के चलते लाखों हिंदुओं ने पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण ले रखी है जिन्हें भारतीय नागरिकता देने का मुद्दा इस साल भी अधर में अटका रहा, लेकिन उन हिंदुओं का क्या,जिन्होंने इस्लाम के डर से 'कबूल है' कह दिया।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इस वर्ष से एक नए तरह का ‍जिहाद चल रहा है, जो हिंदू बहुल इलाके हैं, उनकी स्त्री और भूमि को हड़पा जा रहा है। मानवाधिकार संगठन इस मामले पर चुप है। चुप तो वहाँ की सरकार भी है और भारत सरकार तो इस मामले में धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नजर आती है।

बांग्लादेश में वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारण आज भी वहाँ के बचे हुए हिंदू, बौद्ध और ईसाई समाज के नागरिकों में दहशत का माहौल है। उक्त चुनाव के बाद बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है, जबकि भारत के पूर्वोत्तर में बांग्लादेश से आकर बस गए मुसलमानों ने वहाँ के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। उन्होंने पूरे वर्ष भर छुटपुट हिंसा को अंजाम देकर वहाँ के स्थानीय नागरिकों का जीना दुभर कर रखा है।

असम में सक्रिय 38 गुटों में से करीब 17 गुट बांग्लादेशी मुसलमानों के हैं। घोषित तौर पर इनकी कमान भले ही किसी के भी हाथ में हो, लेकिन उनमें अहम भूमिका बांग्लादेशी मुसलमानों की ही है। ये असम के कई इलाकों में जबरन वसूली करते हैं। इन्हें हरकत उल जिहादी इस्लामी (हूजी) का पूरा समर्थन है। इन आतंकवादी संगठनों ने पूरे राज्य में जाल फैला लिया है। हर जगह उनके 'स्लीपर सेल' मौजूद हैं। 2009 में पूर्वोत्तर में जितने भी विस्फोट हुए उन सभी में 'हूजी' की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

2008 की हिंसा में सुरक्षाकर्मी सहित 1415 लोग मारे गए थे। पूर्वोत्तर के राज्यों में असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम एवं मणिपुर शामिल हैं। 2009 के आँकड़े अभी आना बाकी है। असम में अभी अक्टूबर में ही एक बम धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी। फिर नवंबर में असम के नलबाड़ी में हुए बम धमाकों में सात लोग मारे गए। इस तरह पूरे पूर्वोत्तर राज्य में हर मह छोटे और बड़े बम धमाके होते रहे हैं।

स्टोन कैंसर : देश के हजारों साल पुराने मंदिरों और मठों को जहाँ एक ओर कट्टरपंथ के चलते क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, वहीं कोणार्क के सूर्य मंदिर, पुराने स्मारक, अशोक का स्तंभ, मंडोर की समाधियाँ, बेंगु का माताजी का मंदिर, खजराओं के मंदिर आदि सभी सीलन और खुरचन का शिकार हो गए है। इसी क्षरण के चलते उन्हें स्टोन कैंसर की बीमारी से ग्रस्त माना जाने लगा है। उक्त धार्मिक पुरा संपदाओं के संबंध में 2009 में पुरात्व विभाग की नींद खुली तो अब इनकी देखरेख की योजना बना रही है।

बाबा और गुरु : जहाँ एक ओर सुदर्शन क्रिया को करने के लिए नए नेटवर्क के चलते उनकी ग्रहक संख्या में इजाफा हुआ है, वहीं योग के प्रति बढ़ती रुचि का परिणाम यह हुआ कि बाबा रामदेव सहित अन्य नवागत योग-गुरुओं की चल पड़ी है। दूसरी और इस वर्ष फिर जोर-शोर के साथ तरुण सागर जी कड़वे प्रवचन कहते हुए देखे गए।

जून में श्रीश्री रविशंकर को स्जेंट इस्ज्वान विश्वविद्‍यालय हंगरी ने अपने सर्वोच्च सम्मान 'प्रोफेसर हॉनोरिस कॉजा' (मानद प्रोफेसर) से सम्मानित किया। रविशंकरजी विश्वविद्‍यालय द्वारा आयोजित 10वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्‍य वक्ता थे। इस अवसर पर विश्वविद्‍यालय के उप-डाइरेक्टर प्रो. डॉ. लैस्जलो हॉरनॉक ने उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा।
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